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ज्ञानगंगा वेदवाणी शास्त्रवाणी
प्राक्कथन
सृष्टि के निर्माण के आदिकाल से आज दिन तक सभी ऋषि, मुनि, महर्षि, विद्वद्जन, दार्शनिक, आचार्यगण एक ही हैं बात कहते आये हैं कि मानव जीवन बहुत कठिनाई से प्राप्त होता है इसलिए इसकी महत्ता को पहचान कर सद्वृत्तियों की अनुपालना मानव जीवन का सदुपयोग करना चाहिये और कुप्रवृत्तियों से उत्पन्न होनेवाली कुण्ठा तथा अशान्ति से इसे बचाना चाहिए।
मानव जीवन की श्रेष्ठता-महाभारत में कहा गया है कि मानव सृष्टि में पाँच अंश हैं; असुर, देवता, पितर, मनुष्य और पशु। इन पाँचों में एकमात्र मनुष्य ही श्रेष्ठ है।
‘‘गुह्यं तदिदं ब्रवीमि न हि,
मानुष्यात् श्रेष्ठतरं हि किंचित्।’’
मनुष्य में सब देवताओं का वास है इसलिए मनुष्य पूर्ण सृष्टि में परमात्मा के सबसे नजदीक है। पुरुष की इसी समीपता को शतपथ ब्राह्मण में भी बताया गया है कि-
‘‘नरो वै देवतानां ग्रामः,
पुरुषो वै प्रजापतेनैदिष्टम्।’’
मैत्रायिणी संहिता में भी कहा गया है कि-
‘‘प्रजापतिः देवान् श्रृष्ट्वा मनस्य ते सवतेव मनुष्यान सृजन,
तन्मनुष्याणां मनुष्यत्वं वेद, मनस्वात् ह भवति।’’
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
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