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Description
हद या अनहद
‘हद या अनहद’ प्रख्यात यान्त्रिक डॉक्टर सुनील कुमार शर्मा की मर्मस्पर्शी कविताओं का पहला संग्रह है जो हद और अनहद दोनों ही गतियों का अनूठा दस्तावेज़ है। हद और अनहद की सरहद पर अवस्थित डॉ. शर्मा की ये कविताएँ आपबीती भी हैं और जगबीती भी। एक तरफ़ तो कवि का निजी गोपन आभ्यन्तर है और परिवार तथा कटम्ब, और दूसरी तरफ़ बाह्य जगत् है अपनी तमाम जटिलताएँ और अन्तर्विरोधों के साथ। माता, पिता, घर-गाँव सब है और महानगर का वह त्रासद जीवन भी जहाँ एक पर एक रखे फ्लैटों में हवा भी मानो सीढ़ियाँ चढ़ते ऊपर पहुँचती है।
डॉ. शर्मा एक विलक्षण कवि हैं। सहृदय पाठक स्वयं भी अनुभव करेंगे कि ऐसी कविताएँ अप्रमेय हैं-
आये हो पार कर कितनी लम्बी दूरी
रही बाट जोहती अवलम्बित राह तुम्हारी
ऐसी पंक्तियाँ छन्द की छाया लेकर गहरे अनुराग को व्यक्त करती हैं और कविता को सहज सम्प्रेषित बनाती हैं। ‘घर’ और ‘रंग’ जैसी कविताएँ कुछ अन्य दृष्टान्त हैं-‘और मैं रात भर ढूँढ़ता रह गया चाँद में अपना रंग’।
किसी भी भाषा की समृद्धि के लिए जरूरी है कि अधिकारिक क्षेत्रों से नये कवि आयें और अपने साथ नयी मिट्टी, नया जल लायें। डॉ. शर्मा यही करते हैं जब वह क्लाउड कम्प्यूटिंग सरीखे पदों का पहली बार हिन्दी कविता में प्रयोग करते हैं। निश्चय ही आगे चल कर इन पदों के हिन्दी रूप भी सामने आयेंगे। मशीनों को लेकर कवि ने बिल्कुल नयी संवेदना से कविता रची है जैसे कि ‘मानव ऐप’ को लेकर। ये नये विषय पाठक की माँग करते हैं। भाई गूगल भी इसी कोटि की कविता है। और डिजिटल उपवास भी जो पुरातन पाठक को हतप्रभ कर सकती है।
डॉ. शर्मा के पास बहुवर्णी भाषा है। निश्चल हृहय है। और जीवन को बेहतर बनाने की लालसा है। और ‘मौन’ सरीखी कविताओं की आध्यात्मिकता भी। उन्हीं का बिम्ब लेकर कहें तो यहाँ नमक भी है और शहद भी। यह समकालीन हिन्दी कविता का अपूर्व परिपाक है।
-अरुण कमल
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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