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Description
हक गढ़ती औरत
अंजु दुआ जैमिनी की विचारपरक पुस्तक है ‘हक गढ़ती औरत’। इसका उद्देश्य है कि स्त्री स्वयं को जाने। वह स्वयं को जानना चाहती है तो पहले अपने प्रति दोयम दर्जे के व्यवहार से मुक्ति पाए अर्थात यानी स्त्री तो स्वयं को जाने ही, समाज भी उसे जाने।
अंजु जी का विचारक यहां ‘बंधन में बंधने से पूर्व’ में जहां भ्रूण हत्या, छेड़छाड़, पोर्नोग्राफी, इज्जत से खिलवाड़, भेदभाव, बाल विवाह और प्रेम करने की सजा पर चर्चा करता है, वहीं ‘बंधन में बंधने के बाद’ वह विवाह, अपेक्षाओं, पत्नी, प्रताड़ना, कानून, सच का सामना और हत्या, आत्महत्या या अलगाव तक गंभीर विमर्श करती हैं।
‘बंधन-मुक्ति’ अध्याय में यह पुस्तक असहयोग आंदोलन, खुशियों को ग्रहण, शर्तहीन रिश्ते, समाज के एतराज, ब्लैकमेलिंग और स्त्री के भविष्य पर बात करती है तो ‘पल पल बदलती पहचान’ में बंदिशों और उपदेशों के विरुद्ध जनमत बनाती है, समानता की मांग करती है और सद्व्यवहार को आमंत्रित करते हुए जागृति की जरूरत की रेखांकित करती है।
इस पुस्तक को पढ़ते हुए आप पाएंगे कि यह बौद्धिक स्त्री-विमर्श नहीं है। यहां जिंदगी की सच्चाइयों के बीच से उभरी वस्तुस्थितियों से टकराने और एक नया यथार्थ बनाने की सदाकांक्षा है।
स्त्री विमर्श पर आधारित पुस्तक ‘मोर्चे पर स्त्री’ के लिए राष्ट्रीय भारतेन्दु हरिश्वन्द्र सम्मान से सम्मानित युवा लेखिका अंजु दुआ की यह पुस्तक पत्रकारों, अध्यापकों और छात्रों के लिए ही नहीं, घरेलू महिलाओं के लिए भी बेहद ज़रूरी है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher |
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