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Description
हंसवाहिनी
एक
मैं सरस्वती, किसी के लिए महासरस्वती। विद्या एवं कला प्रदान करने के लिए सर्वख्यात हूं। इसीलिए मैं एक हाथ में पुस्तक धारण करती हूं तो दूसरे में वीणा भी। मेरा वाहन हंस है क्योंकि उसका रंग अत्यंत धवल, उज्जवल है और धवलता, उज्जवलता मुझे अत्यन्त प्रिय है, अतः मैं श्वेत वस्त्र ही धारण करती हूं। यही सात्विक रंग है। शेष सभी रंग राजसिक अथवा तामसी हैं। रज और तम से मुझे कुछ लेना-देना नहीं। सत् ही मुझे प्रिय है, अतः मेरी उपासना के लिए सत्यव्रतधारी होना आवश्यक है। संस्कृत की यह उक्ति मुझे अत्यन्त प्रिय है –
‘असतो मा सद्गमय’ – असत्य नहीं, सत्य की ओर चलो। वस्तुतः मैं ज्ञान की देवी हूं और ज्ञान सत्य का दूसरा नाम है। जो सत्य नहीं बोलता है वह ज्ञान को नहीं प्राप्त कर सकता और इस तरह ज्ञान की देवी अर्थात् मुझको भी उससे कुछ लेना-देना नहीं होता। आपके चिन्तकों ने इसीलिए सत्य की महिमा को रेखांकित करते हुए कहा है, ‘सत्यं वद धर्म चर’- सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो अर्थात् सत्य बोलना ही वास्तविक धर्माचरण है। अगर किसी को इस बात में संदेह हो कि धर्म क्या है तो उसको यह जानना चाहिए कि भारतीय मनीषियों ने स्पष्ट किया है कि सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है-‘न हि सत्यात् परो धर्मः’।
मैं सत्यव्रती को ज्ञान प्रदान करती हूं। ज्ञान का महत्त्व भारतीय चिन्तन में सर्वत्र लक्षित है। मैं कुछ उदाहरण देना चाहूंगी। भारतीय मनीषियों ने माना है कि मनुष्य वस्तुतः पशु ही है। आज पाश्वात्य चिन्तक तो यह भी कहते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक पशु है। यह ठीक है कि मनुष्य और पशु दोनों मरणधर्मा हैं। दोनों जन्म लेते हैं, खाते-पीते हैं और मर जाते हैं। फिर भी मनुष्य और पशु में अन्तर है। भारतीय चिन्तकों ने इसे इस रूप में स्पष्ट किया है –
‘आहार निद्रा भय मैथुनं च।
सामान्यदेतत् पशुभिर्नराणां॥
ज्ञानं हि तेषामधिको विशेषः।
ज्ञानेन हीनाः पशुभिर्समानाः॥’
भोजन में, निद्रा में, सन्तानोत्पत्ति में, पशु और मनुष्य समान हैं। मनुष्यों में एक ज्ञान ही उनकी विशेषता है। ज्ञान से रहित मनुष्य पशु-सदृश ही है।
Additional information
Binding | Hardbound |
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Publishing Year | 2023 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
Authors | |
ISBN | |
Pages |
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