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Description
श्री हनुमद पुराण
श्री हनुमत् ध्यान
उद्यन्मार्तण्डकोटिप्रकटरुचियुतं चारुवीरासनस्थं
मौन्जीयज्ञोपवीतारुणरिचिर शिखाशोभितं कुण्डलांकम्।
भक्तानामिष्टठदं तं प्रणतमुनिजनं वेदनादप्रमोदं
ध्यायेद्देवं विधेयं प्लवगकुलपतिं गोष्पदीधूतवार्द्धिम्॥
उदय होते हुए प्रकाशमान सूर्य जैसे तेजस्वी, मनोरम वीरासन से स्थित, मूंज की मेखला तथा यज्ञोपवीत धारण करने वाले, लाल वर्ण की सुन्दर शिखा वाले, कुण्डलों से सुशोभित, भक्तों को अभीष्ट फल देने वाले, मुनियों से वन्दित, वेदनाद से हर्षित, वानरकुल के स्वामी और समुद्र को गोपद के समान लांघ जाने वाले स्वरूप का ध्यान व्यापक या सर्वानुकूल प्रतीत होता है।
श्रीराम :
“जब तक संसार में मेरी कथा प्रचलित रहेगी तब तक तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे और तुम्हारी कीर्ति भी अमित रहेगी।”
हनुमानजी :
‘‘स्वामी ! जब तक संसार में आपकी पावन कथा प्रचलित रहेगी तब तक आपकी आज्ञा का पालन करता हुआ मैं इस पृथ्वी पर ही रहूँगा।’’
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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