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हनुमान कौन
आमुख
“जिज्ञासा” एक स्वाभाविक मानवीय अंतर्क्रिया भी है – प्रतिक्रिया भी – जिज्ञासा का समाधान साधन है बुद्धि, विवेक, ज्ञान, तो वहीं तर्क शक्ति का भी आश्रय लिया जाना अभीष्ट ही होता है। किंतु यह प्रक्रिया सामान्य और विशिष्ट सांसारिक चेतना, कर्म, कारण के सिद्धातों पर ही संपादित भी हो सकती है – प्रभावी परिणाम भी प्रदान कर सकती है, किंतु बुद्धि ज्ञान दोनों ही मानव मात्र को प्रदत्त हैं। उस रहस्यमयी तत्व सत्ता द्वारा जिसे “नेति-नेति” कहते भी सर्वदा मान्य माना ही जाता है इस संसार के प्रत्येक कोने में – मार्ग भिन्न हो सकते हैं साधन, प्रक्रियायें भी किचिंत् भिन्न-भिन्न हैं किंतु वह “तत्व” – वह ‘ईश्वर’ तो मन और बुद्धि से भी परे – अगम्य है, अगोचर है, पुनः अखण्ड भी है, अविकारी भी, अनंत भी, विराट भी, तो सूक्ष्म भी। ज्ञान तो बुद्धि द्वारा सांसारिक संसाधनों से प्राप्य विद्या मात्र है तो बुद्धि और मन भी जिस “तत्व” को-वाणी और ज्ञान भी जिस ‘सत्ता’ को न खोज पाने में असमर्थ ही रहते आये हैं – “यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह’’- उस अगोचर – अगम्य यद्यपि नियंता और अनिवार्य ‘सत्ता’ को हम तुलसी जी के शब्दों में – एक लघु साधनमार्ग – मानव देह के माध्यम से कैसे जानें – ‘क्षिति जल पावक गगन समीरा’ – की पंचतत्व प्रकृति उस एक ब्रह्म – एक तत्व को जान सकने में असमर्थ ही रहती आयी है – विभ्रम, अज्ञान, आशंका के मध्य चलती जीवन प्रक्रिया में फिर वह कौन सा साधन मार्ग है जो इस “अगोचर तत्व” का भान करा सकता है, – “न च तस्यास्ति वेत्ता’ – कोई उसे जानने वाला नहीं – तो वहीं – ‘मानस’ – महानतम संत-भगवतृकृपा प्राप्त तुलसी जी की दिव्य लेखनी का ही भगवत्मसाद है – जिसने सरलतम स्वरूप से प्रत्येक को इस ‘तत्व’ ज्ञान को समझाया है –
अर्थात् ‘जिज्ञासा’ का समाधान है – ‘विश्वास’ और एक ‘विश्वास’ हेतु मूल संस्कार है – ‘समर्पण’। ‘सेवा’ मार्ग से जिज्ञासु बन समर्पित मुद्रा में जब विश्वास का आश्रय लेते हैं तो इस रहस्यमयी ‘तत्व सत्ता’ का प्रथम आभास – प्रथम अनुभूति होती है – ‘प्रेम’ के लघुबिंदु के स्वरूप में। जैसे-जैसे ‘प्रेम’ घनीभूत होता जाता है, यह विश्वास, यही सेवा, यही समर्पण – मनसा, वाचा, कर्मणा – प्रेम के इसी घनीभूत रूप को एक आकार प्रदान करते दिखते हैं – स्वतः स्वाभाविक रूप में – “तस्य भाषा सर्वमिदं विभाति” – अर्थात् वह ‘तत्व’ जिसके प्रकाश से यह ‘संपूर्ण’ ही आलोकित है एक “सिंदूर वदन विग्रह” का ज्योतिर्पुज बनता चला जाता है – आत्मा में – कण-कण में सर्वत्र एक झंकार, एक मधुर संगीत ध्वनित होता जाता है – यह है ईश्वरीय ‘अनहद नाद’- “सदा मे समत्वं न मुक्ति र्न वन्धश्च्चिदानन्द रूपः, शिवोऽहं – शिवोऽहं …’’। यह है हनुमत् सत्ता – जो सेवा प्रेम विश्वास का ही संपूर्ण समर्पण बन कण-कण में विराजित है।
“मानस” माध्यम से तुलसी जी इस जटिल – मन बुद्धि से भी अगम्य सत्ता का सूक्ष्म परिचय सरलतम भाषा शैली में अपने प्रेम रस प्रवाह से जन-जन को प्रदान कर गये हैं – श्री हनुमान जी ही सत्प्रेरणा हैं, मानव मात्र के लिये – संरक्षक हैं – संकटमोचक तो विख्यात ही हैं – कलिकाल के एकमात्र विश्वसनीय स्तुत्य शक्ति स्तोत्र हैं – और आपका स्वयं का परिचय क्या ? यह ‘मानस’ और ‘चालीसा’ के माध्यम से जानने-समझने का लघु प्रयास इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है। हनुमान जी की अपरिमेय शक्तियों – असंभव कार्यों को भी संभव सफल कर देने वाली निराली लीलाओं तथा प्रत्येक को अभय प्रदान करने वाली मंगलमूरत को नमन् करते हमने इन्हीं मंगल प्रभु को अपनी क्षुद्र ईश्वर प्रदत्त बुद्धि से जानने-समझने का प्रयास किया है – प्रेरणा स्वयं श्री हनुमान जी महाराज की ही रही है – सुधी – सुविज्ञ पाठक इस प्रयास का आनंद लें – रसास्वादन करें तथा हनुमान जी महाराज के सत्प्रेरक संदेश से लाभान्वित हों – धन्य हों – यही एकमात्र उद्देश्य हमारा और हमारी संस्था का रहता आया है –
“मोरि सुधारेहु सो सब भाँती।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।”
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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