Hashiye Ki Ibaraten

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Hashiye Ki Ibaraten

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250.00 190.00

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Author: Chandrakanta

Availability: Out of stock

Pages: 208

Year: 2009

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126716517

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

हाशिए की इबारतें

चन्द्रकान्ता की कृतियाँ जहाँ सामयिक व्यवस्था के विद्रूपों एवं स्त्री-विमर्श की जटिलताओं की तहें खोलती हैं, वहीं सम्बन्धों के विघटन और मनुष्य के यान्त्रिक होते जाने की विडम्बनाओं के बावजूद मूल्यों और विश्वासों की सार्थकता को नए आयाम देती हैं। कश्मीर पर तीन महत्त्वपूर्ण उपन्यास लिखने के बावजूद चन्द्रकान्ता का लेखन समय के ज्वलन्त प्रश्नों एवं वृहत्तर मानवीय सरोकारों से जुड़ा है।

प्रस्तुत है, स्त्रियों की सोच, आकांक्षाओं, स्वप्नों और संघर्षों की सच्चाइयों से साक्षात्कार करवाने वाली चन्द्रकान्ता की सद्यः प्रकाशित पुस्तक : हाशिए की इबारतें। अपने आत्मकथात्मक संस्मरणों के बहाने चन्द्रकान्ता ने स्त्री-मन के भीतरी रसायन को खँगाला है। वहाँ अगर अँधेरे तहखाने हैं, तो रोशनी के गवाक्ष भी हैं; चाहों का हिलोरता सागर भी है और प्यास से हाँफता रेगिस्तान भी।

बकौल लेखिका : ‘‘मैंने इन संस्मरणों में स्त्री-समीक्षा नहीं की है, स्त्री-जीवन की भौतिकी, भीतरी कैमिस्ट्री की दखल अन्दाजी से बने गुट्ठिल व्यक्तित्व की कुछ गुत्थियों को खोलने की चेष्टा की है। बेटी, माँ, बहन, पत्नी, दादी, नानी के रोल निभाती स्त्री की सोच, आकांक्षाओं और स्वप्नों में सेंध लगाकर जानना चाहा है कि कई दशकों को पीछे ढेलते, प्रगति के तमाम सोपान पार करने के बाद, स्त्री से जुड़ी परिवर्तनकारी रीति-नीतियों और पुरुष वर्चस्व के अहम् पूरित सोच में कितना कुछ सार्थक बदलाव आ पाया है। घर-परिवार की धुरी स्त्री क्यों केन्द्र में कदम जमाने से पहले ही बार-बार हाशिए पर धकेल दी जाती है ? भूमंडलीकरण के इस दौर में भी क्या स्त्री के लिए कसाईघर मौजूद नहीं, जहाँ खामोश अपढ़ और बोलनेवाली तेज-तर्रार, दोनों मिजाज की स्त्रियाँ, गाहे-बगाहे शहीद की जाती हैं ?’’

मानवतावादी विचारक एम.एन. राय प्रस्तुत पुस्तक मानवतावादी विचारक एम.एन. राय विचारक मानवेन्द्रनाथ राय की जीवनी है, जिसमें उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है। भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन के इतिहास में श्री मानवेन्द्रनाथ राय के कार्य- कलाप वह मजबूत कड़ी है, जिससे प्रथम महायुद्ध के पूर्व और उसके बाद के क्रान्तिकारी आन्दोलन का जुड़ाव रहा है। श्री मानवेन्द्रनाथ राय का जीवन घटनापरक और विचारपरक – दोनों ही तरीका का रहा है। कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी होने के बाद समाजवादी-मार्क्सवादी विचार-जगत में अपने विवेक और बुद्धि से विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लिया था और अन्त में उन्होंने ‘नव-मानववाद’ सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसमें मार्क्सवाद-समाजवाद की वर्ग-सीमाओं को तोड़ करके सम्पूर्ण मानव-जाति के विकास के लिए सहज मानवीय समाज के द्रष्टा बन गए।

श्री मानवेन्द्रनाथ राय ने साम्यवाद की परिधि के आगे जाने पर जोर देते हुए कहा कि पूँजीवाद तथा शोषण आधारित सामाजिक व्यवस्था को समाप्त करना पूरी मानव जाति-समाज के हित में है, अतः केवल वर्ग संघर्ष और वर्ग चेतना के आधार पर यदि सत्ता ग्रहण की गई तो सर्वहारा वर्ग की तानाशाही तो स्थापित हो सकती है, लेकिन शोषण मुक्त समाज स्थापित नहीं किया जा सकता। व्यक्ति और मानव मात्र की स्वतन्त्रता चाहे वह राजनीतिक स्वतन्त्रता हो अथवा आर्थिक या सामाजिक, उस सबके लिए यह आवश्यक है कि उसके अवसरों को बढ़ाया जाए। शोषणहीन समाज व्यवस्था में पूँजीवादी व्यवस्था की तुलना में व्यक्ति को पहले से अधिक विकास के अवसर मिलने चाहिए। आर्थिक समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्वपूर्ण समाज व्यवस्था में सभी क्षेत्रों में व्यक्तिगत उन्नति का सभी को पूरा-पूरा अवसर मिलना चाहिए। इसी आधार पर उन्होंने व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर अधिक जोर दिया।

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Hardbound

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Publishing Year

2009

Pulisher

Language

Hindi

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