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Description
हठयोग प्रदीपिका
चित्त की वृत्तियों के सांसारिक प्रवाह को अन्तर्मुखी करने की प्राचीन भारतीय साधना पद्धति ही हठयोग है। हठयोग शारीरिक एवं मानसिक श्रेष्ठता हेतु विश्व की प्राचीनतम प्रणाली है। योग विद्या के श्रेष्ठ प्रतिपादन हेतु ही स्वामी स्वात्माराम जी ने हठयोग प्रदीपिका की रचना की थी।
‘ह’ एवं ‘ठ’ के योग से मिलकर बना है हठयोग। ‘ह’ आर्थात सूर्य ‘ठ’ अर्थात चन्द्र। इन दोनों का योग ही प्राणों के आयाम को प्रतिबिम्बित करता है। इनके समन्वय की प्राणायाम प्रक्रिया ही ‘ह’ और ‘ठ’ का योग अर्थात हठयोग है।
हठयोग शुद्धि पर विशेष बल देता है इसलिये इसमें षटकर्मों पर विशेष महत्व दिया गया है। हठयोग प्रदीपिका के आसन ही आज YOGA बनकर पूरे विश्व को भारत की इस धरोहर का परिचय करा रहे हैं। वास्तव में हठयोग प्रदीपिका ग्रन्थ हठयोग का उत्कर्ष है।
स्वामी स्वात्माराम विरचित
हठयोग प्रदीपिका
हठयोग का उत्कर्ष
हठयोग दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘ह’ एवं ‘ठ’। ‘ह’ अर्थात् सूर्य एवं ‘ठ’ अर्थात् चन्द्रमा। इन दोनों स्वरों (इड़ा एवं पिंगला) के मिलन से साधक का प्राणवायु सुषुम्ना में जाकर कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करता है। सूक्ष्म शरीर के षटचक्रों व भेदन एवं मोक्ष मार्ग पर प्रवृत्त करना ही हठयोग का लक्ष्य है।
हठ का एक अन्य अर्थ है जिद। शरीर नया आयाम देने हेतु तथा शारीरिक व्यवस्था को पुनर्संतुलित करने के लिए एक बोधपूर्ण हठ की आवश्यकता होती है। हठयोग विद्या के अन्तर्गत विशेष प्रयास एवं जागरूकता से शरीर तथा मन का उत्तरोत्तर विकास किया जा सकता है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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