Haveli ke Andar

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Author: Rama Mehta

Availability: 1 in stock

Pages: 147

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788172018054

Language: Hindi

Publisher: Sahitya Academy

Description

हवेली के अन्दर

‘हवेली के अन्दर’ पुरस्कृत उपन्यास इन्साइड द हवेली का हिन्दी अनुवाद है। इसमें उदयपुर स्थित सज्जनगढ़ रियासत की सुप्रसिद्ध हवेली की अन्तरंग गाथा को बहुत ही प्रामाणिक ढंग से अंकित किया गया है। इसमें चार-चार पीढ़ियों के दुख-दर्द, हर्ष-विषाद तथा सामंतवादी रूढ़ियों एवं प्रगतिशील मूल्यों के टकराव और अन्तर्द्वंद्व को बड़ी कुशलता से उकेरा गया है।

प्रस्तुत कृति का हिन्दी अनुवाद श्रीमती कांति सिंह ने किया है।

हवेली के अन्दर

खण्ड 1

एक

उदयपुर कभी मेवाड़ की राजधानी हुआ करता था, मगर आज यह राजस्थान के कई दूसरे शहरों की तरह महज़ एक शहर होकर रह गया है। हालाँकि इसकी स्थिति में आए इसके बदलाव ने सौंदर्य को कम नहीं किया है और ना ही उस रहस्यमयता को घटाया है जो ‘पुराने शहर’ पर तारी है। शहर एक प्राचीर की दीवार से घिरा हुआ है जो चार सौ सालों के बाद धीरे-धीरे दमक रही है। इसमें बड़ी दरारें पड़ गयी हैं, फिर भी यह दीवार उदयपुर को दो हिस्सों में बाँटती है। नया शहर इस पुरानी दीवार के बाहर है और पुराना शहर इसके भीतर।

शहर के पश्चिमी हिस्से में पिछोला झील पड़ती है। मर्द इसमें नहाते हैं धोबी इसके किनारे अपने गधों की पीठ से गट्ठर उतारते हैं और कपड़े धोते हैं। घर का चूल्हा सुलगाने के पहले औरतें इसके किनारे पर बने मंदिर में आकर घंटियाँ टुनटुना जाती हैं। शहर को छूता हुआ झील का पानी गंदला है, और यहाँ तक कि इसमें कभी-कभी बदबू भी आती रहती है। ख़ास कर तब, जब बरसात कम होती है और झील लबालब भरी नहीं होती।

शहर के उत्तर में सीधा खड़ा सज्जनगढ़ है। पहाड़ी की गोद में। कभी यह घने जंगल से भरा हुआ था जिसमें राजा रजवाड़े बाघ चीतों का शिकार करते थे। गुरबे यहाँ आकर जलावन की लकड़ी के लिए टहनियाँ और शाखें चुना करते थे। लेकिन आज पेड़ सूखे और नंगे खड़े हैं। अब वह घनापन नहीं रहा जिसमें जंगल की ओर जाने वाली पगडंडियाँ गुम हो जाती थीं। उदयपुर में सब कुछ बरसात के आसरे हुआ करता है और जब बरसात नहीं होती, झीलें सूख जाती हैं, पेड़ झड़ने लगते हैं।

इसी प्राचीर में शहर की ओर खुलते हुए चार दरवाज़े हैं। इन विशाल दरवाजों के हर पल्ले पर कीलें लगी हुई हैं। जिन दिनों उदयपुर के राजाओं को मुगल शासकों के हमले के लिए हमेशा तैयार रहना पड़ता था, उन दिनों ये दरवाज़े रात को बंद कर दिए जाते थे। अब कोई खतरा नहीं है और इसीलिए वे कभी बंद नहीं किये जाते। शहर का सारा आवागमन इन्हीं की मार्फ़त होता है।

शहर में एक ही मुख्य सड़क है और यह राजमहल को जाती है। मगर कई छोटी-छोटी गालियाँ इस सड़क से फूटती हैं और शहर के भीतरी हिस्सों तक जाती हैं। कुछ गलियों में एक कार के गुज़र सकने तक की जगह है। बाकी गलियों में सिर्फ़ साइकिल वाले ही पार हो सकते हैं। इन चौड़ी सँकरी गलियों के दोनों ओर छोटी-छोटी दुकानें हैं। गलियों के इस जाल की मार्फ़त हर घर जुड़ा हुआ है और बच्चे एक घर से दूसरे घर तक जन्म, मृत्यु की सूचनाएँ बाँट सकते हैं। मुख्य सड़क के दोनों ओर बड़ी दुकानें हैं जो हमेशा भरी रहती हैं। इनकी छतों से लटकते गुलाबी सिल्क सहित आने जाने वालों को लुभाते रहते हैं।

पहाड़ की चोटी पर उजला ग्रेनाइट महल है जहाँ चार सौ सालों तक राणा का दरबार सजता रहा और यहाँ से पिछौला झील दिखाई पड़ता है। और झोंपड़े हुआ करते थे। वे महल की चमक-दमक देखते, हाथियों की चिंघाड़ सुनते और संतुष्ट रहते। वहाँ उनका राजा उनकी रक्षा के लिए रहता था। लगभग पच्चीस साल पहले महल की रोशनियाँ धुँधला गयी थीं और मेवाड़ की पताका झुक गयी थी। लोग उदास थे क्योंकि राणा की सत्ता छिन गयी थी और उनके मंत्रियों का ख़जाने और ज़मीन की बंदोबस्ती पर दखल नहीं रहा था। पुराने शहर के लोग अभी भी उन दिनों को याद करते हैं जब सब कुछ हँसी-खुशी के साथ चल रहा था, जब राणा अपने सिंहासन पर बैठते थे और अपनी प्रजा से अमीर-गरीब के बिना किसी भेदभाव के मिलते थे। उन दिनों को शहर का कोई बाशिंदा नहीं भूल सकता जब उदयपुर अपनी प्रजा का हुआ करता था।

आज उन्हें पता है कि एक नया शहर इस पुराने शहर की दीवार के पार पनप चुका है। उन्होंने पक्की चौड़ी सड़क के दोनों ओर बन रहे साफ़-सुथरे मकानों की कतारें देखी हैं। इन मकानों में साफ़-सुथरे बागीचे हैं जहाँ हरी घास है और गुलाब खिलते हैं। स्वच्छ हवा, गोबर और उपलों की गंध से मुक्त है मगर इस नये शहर की कोई आत्मा नहीं है। इस नये शहर के लोगों का उदयपुर के अतीत से कोई वास्ता नहीं है, ये नये आये हुए लोग हैं। इनके पुरखे एक नहीं हैं। उन्हें पता नहीं है कि वे क्या किया करते थे। किस देवी-देवताओं को पूजते थे कैसे सुखों-दुखों के बीच जीते थे। मेवाड़ की मिट्टी से उनका कोई जुड़ाव नहीं है, वे रोजगार की तलाश में इस शहर में आये हैं, उन्हें यहाँ की झीलों और छोटी पहाड़ियों का सौंदर्य मोहित करता है जो उन्हें गर्मी के तपते हुए महीनों में भी राहत पहुँचाती है। इस नये शहर में गुलाबों के बागीचे अमीरों और ग़रीबों को अलग कर देते हैं, वे एक दूसरे को नहीं जानते, वे अलग-अलग जिन्दगियाँ जीते हैं। सिर्फ़ पक्की चौड़ी तारकोल की सड़क पर ही उनका साया है, चूँकि इस पर गीरबों को भी चलने का भी हक़ है।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

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