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Description
हवा में चिराग
‘प्रकृति पर आदमी जो अत्याचार करता रहा है, अब भी कर रहा है, तो उसे प्रकृति का प्रकोप कभी न कभी झेलना ही पड़ेगा – यह मैं शुरू से ही लिखता आ रहा हूँ – तो कोरोना से अचम्भित या भयभीत नहीं हूँ। पीड़ा जो दुनिया मैं पीछे छोड़ जाऊँगा उसे लेकर है – बच्चे स्कूल का प्लेग्राउण्ड नहीं देख सकेंगे, कार्यालय वीडियो कान्फ्रैंसिंग, मोबाइल से चलेंगे, लड़के-लड़कियों का यौवन पतझर जैसा होगा, लोगों को एक-दूसरे की तक़लीफ़ में खड़े होने का मौका नहीं मिलेगा तो वे अजीब स्वार्थी हो जायेंगे – सोशल डिस्टैंसिंग आदमी की सामाजिकता ही सोख लेगी – फिर तो हम पशुओं की तरह जी रहे हैं – और क्या !’’ उत्पल प्रेम के सत्व को जियें – किसी के होने मात्र से अगर पृथ्वी सुन्दर लगे, वहाँ कैसे भी हालात में जीने की प्रेरणा जाग उठे – जैसे बुझी पड़ी सिगड़ी में आग का कोई कण चमक उठता है।
– इसी उपन्यास से
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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