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Description
हीरो एक ब्लू प्रिंट
…तस्वीर ? कोई तस्वीर नहीं है। पटना के जनसेवा अनाथ आश्रम का जो लड़का, आदिवासी छात्रवृत्ति लेकर, धनबाद कॉलेज़ में पढ़ने गया था, उस वक़्त की एक ग्रुप तस्वीर कहीं जरूर रखी है। लेकिन उस तस्वीर में, आज के हीरो को पहचानना नामुमकिन है। उसका तो फिंगर प्रिंट तक नहीं मेल खाता। लालपुर पुलिस ने उसकी उंगलियों की छाप ली जरूर थी, लेकिन जौरवाली में हरिजन बस्ती में लगी आग बुझाते हुए, उसकी हथेली ही जल गई। हाथ में पैसा आने के बाद, बाएं और दाहिने हाथ की प्लास्टिक सर्जरी कराई गई। जी नहीं, वह अँगूठा छाप नहीं था। किसी भी जन-बहुल शहर में, किसी को भी, कहीं भी गुम हो जाने की कतई मनाही नहीं है। अगर वह मर भी जाए तो लाश, बिना शिनाख्त के ही पड़ी रहेगी। इतने साल बाद, यह सब सोचने बैठो, तो कहीं से असहाय होने का अहसास तो होता ही है…
– इसी उपन्यास से
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2012 |
Pulisher |
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