Hindi Ka Asmitamulak Sahitya Aur Asmitakar

-10%

Hindi Ka Asmitamulak Sahitya Aur Asmitakar

Hindi Ka Asmitamulak Sahitya Aur Asmitakar

200.00 180.00

In stock

200.00 180.00

Author: Dr. Rajendra Prasad Singh

Availability: 3 in stock

Pages: 104

Year: 2016

Binding: Hardbound

ISBN: 9789383682812

Language: Hindi

Publisher: Aman Prakashan

Description

हिन्दी का अस्मितामूलक साहित्य और अस्मिताकार

भूमिका

इक्कीसवीं सदी का हिन्दी साहित्य कई मायनों में अधिक लोकतांत्रिक हुआ है। खास वर्ग क्षेत्र, जाति, धर्म आदि का वर्चस्व इस पर से टूटा है। आज हिन्दी साहित्य में दलित, आदिवासी , पिछड़े और स्त्रियों ने एक खास पहचान बनाई है। दलित साहित्य आदिवासी साहित्य, ओबीसी साहित्य और स्त्री विमर्श जैसी साहित्यिक धाराएँ हिन्दी साहित्य के लिए गौरव का विषय बन गई हैं। इसे भारत के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों ने हाशिए के समाज पर केन्द्रित साहित्य के रूप में अपने पाठ्यक्रमों में स्वीकृत किया है। इसे समग्र रूप से “बहुजन साहित्य” की संज्ञा देने का प्रचलन बढ़ा है।

“बहुजन साहित्य” या कहें, हाशिए के समाज केन्द्रित साहित्य को ही दूसरे शब्दों में ‘‘अस्मितामूलक साहित्य’’ कहा जाता है। अस्मितामूलक साहित्य के बगैर अब हिन्दी साहित्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अस्मितामूलक साहित्य के अंतर्गत वे सभी साहित्यिक धाराएँ शामिल हैं जो हाशिए के समाज पर केन्द्रित हैं। दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य, ओबीसी साहित्य और स्त्री साहित्य अस्मितामूलक साहित्य के अभिन्‍न अंग हैं।

अस्मितामूलक साहित्य के निर्माण में सदियों लगा है। कई विद्वानों, दार्शनिकों, चिंतकों व रचनाकारों का इसमें योगदान रहा है। इतिहास गवाह है कि अस्मितामूलक साहित्य के स्वर को कई बार दबाया गया है। पर रक्तबीज की भाँति बार-बार यह जीवित हो उठा है। कभी बुद्ध, कभी कबीर, कभी फुले, कभी आंबेडकर, कभी बिरसा मुंडा जैसे अस्मिताकारों ने इसे गढ़ा और रचा है। आज यदि अस्मितामूलक साहित्य हिन्दी के केन्द्र में है तो ऐसे ऐतिहासिक पुरुषों के बलबूते है। उनके चिंतन, विचारधारा, दर्शन आदि इस साहित्य की साँसों में बसा हुआ है।

सच है कि अस्मितामूलक साहित्य के अनेक प्रेरक पुरुष इतिहास में दफन हैं। पर वे जनता की याददाश्त में आज भी जिंदा हैं-कहीं लोकगाथाओं के रूप में तो कहीं लोक मिथकों के रूप में। सलहेस दुसाध, दीना-भद्री डोम, लोरिक अहीर, महथिन देई कोयरिन जैसे अनेक नायक एवं नायिकाएँ लोक परंपराओं में जीवित हैं। इनका निवास मंदिरों में नहीं है। ये आम जनता के खेत-खलिहाअनों में, मिट्टी के ढूहों पर और सती मैया के चौरों पर जिंदा हैं।

चिनुआ अचीबी ने लिखा है कि जब तक हिरन अपना इतिहास खुद नहीं लिखेंगे, तब तक हिरनों के इतिहास में शिकारियों की शौर्य गाथाएँ गाई जाती रहेंगी। राजस्थान का मतलब सिर्फ महाराणा प्रताप और रेगिस्तान नहीं है। राजस्थान का इतिहास वहाँ के भीलों को छोड़कर नहीं लिखा जा सकता है। भारत का इतिहास सिर्फ मगध साम्राज्य का इतिहास नहीं है बल्कि उसमें पूर्वोत्तर के आदिवासियों का हिस्सा भी शामिल है। भारत की आजादी की लड़ाई सिर्फ कुलीन सामंतों का संघर्ष नहीं है बल्कि बिरसा मुंडा जैसे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों का भी संघर्ष है। अस्मितामूलक साहित्य ने इन सभी को गहरे में रेखांकित किया है।

अस्मितामूलक साहित्य का विस्तार-क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। इसने पत्रकारिता, कहानी, उपन्यास, नाटक, आत्मकथा से लेकर इतिहास, काव्यशास्त्र और भाषाविज्ञान तक को प्रभावित किया है। सभी क्षेत्रों में, सभी साहित्यिक विधाओं में इसके पदचाप सुने जा सकते हैं। सामाजिक, राजनीतिक हल्कों से लेकर दर्शन, अर्थ,कला, फिल्म और मीडिया तक की परिधि को छूता हिन्दी का अस्मितामूलक साहित्य सर्वत्र व्याप्त है। अस्मितामूलक साहित्य सागर का पानी है। अभिजन साहित्य की तरह यह तटबंधों में बँधा नहीं है। इसे रोकने की क्षमता तटबंधों में नहीं है। युगों-युगों के तटबंधों को तोड़कर हिन्दी साहित्य में यह गर्जना करते हुए बह चला है। अंत में अस्मितामूलक साहित्य के सभी विमर्शकारों का हृदय से आभारी हूँ।

– राजेन्द्र प्रसाद सिंह

 

अनुक्रम

  • झारखंड का आदिवासी समाज
  • पूर्वोत्तर आदिवासियों की भाषा और संस्कृति
  • आदिवासियों की मुंडा भाषाएं
  • आदिवासी भाषाएँ तथा हिन्दी
  • हिन्दी भाषा और संस्कृति में दलित विमर्श
  • हिन्दी भाषा में स्त्री विमर्श
  • ओबीसी साहित्य की अवधारणा
  • ओबीसी साहित्य का उद्भव एवं विकास
  • ओबीसी साहित्य एवं कबीर
  • महात्मा जोतिबा फुले
  • अमर शहीद जगदेव प्रसाद
  • महामना रामस्वरूप वर्मा
  • जननायक कर्पूरी ठाकुर
  • उपन्यासकार कुशवाहा कांत
  • कथाकार राजेन्द्र यादव
  • मधुकर सिंह
  • रामधारी सिंह दिवाकर
  • पत्रकार प्रमोद रंजन

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2016

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Hindi Ka Asmitamulak Sahitya Aur Asmitakar”

You've just added this product to the cart: