Hindi Ki Lambi Kavitaon Ka Aalochana Paksha
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Description
हिंदी की लंबी कविताओं का आलोचना पक्ष
जब पुराने काव्यरूप नए कथ्य को अभिव्यक्त करने में असमर्थ हो जाते हैं तो रचनाकार नए युग के अनुकूल भावाभिव्यक्ति के लिए नए काव्यरूप की तलाश करता है। पश्चिमी देशों में भी पूँजीवाद के उभार के दौर में नए काव्यरूप की तलाश रचनाकारों द्वारा की गई है। इसीलिए अंग्रेज़ी साहित्य में व्हिटमैन, वड् र्सवर्थ, कीट्स आदि ने लम्बी कविताएँ रचीं। आधुनिक हिन्दी के छायावाद युग में भी नई संरचनाएँ अस्तित्व में आती हैं और नए काव्यरूप बनते हैं।
लम्बी कविता की अवधारणा छायावाद काल की है। कोई इसे ‘परिवर्तन’ से आरम्भ मानता है तो कोई इसे ‘प्रलय की छाया’ से। माना जाता है कि कुछ आलोचक ‘राम की शक्ति-पूजा’ से लम्बी कविता का आरम्भ मानते हैं। बावजूद इसके इतना तो तय है कि लम्बी कविताओं की एक सुदृढ़ एवं नियमित परम्परा मुक्तिबोध से आरम्भ होती है।
लम्बी कविता की परम्परा को मुक्तिबोध के बाद राजकमल चौधरी की ‘मुक्ति प्रसंग’ और धूमिल की ‘पटकथा’ आगे बढ़ाती है। राजकमल चौधरी की ‘मुक्ति प्रसंग’ कविता एक ऐसे आदमी के भटकाव की कविता है, जो सार्थकता की तलाश में निरर्थक होते जाने की पीड़ा को पीठ पर लादे घूम रहा है। धूमिल की कविता ‘पटकथा’ भी राजनीति-केन्द्रित कविता है। यह कविता आज़ादी के बाद की हालत का बखान करती है। कविता का आरम्भ आज़ादी के मोह और आकर्षण से होता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दी की लम्बी कविताएँ युग-बोध की उपज हैं और इस काव्यरूप का भविष्य आगे भी उज्ज्वल है। आज भी लम्बी कविताओं का लेखन जारी है। इस पुस्तक में चार कवियों की नौ लम्बी कविताओं की विवेचना शामिल है। पहले कवि निराला हैं जिनकी चार कविताएँ आलोचना के लिए चुनी गई हैं। उनके बाद अज्ञेय, मुक्तिबोध और धूमिल की कविताओं का विश्लेषण किया गया है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher |
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