Hindi Sahitya Ka Doosara Itihas

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Hindi Sahitya Ka Doosara Itihas

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Author: Bachchan Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 536

Year: 2022

Binding: Hardbound

ISBN: 9788171197859

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास

‘हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास’ हिन्दी के मूर्द्धन्य आलोचक, चिन्तक डॉ. बच्चन सिंह की महत्त्वपूर्ण पुस्तक है।

उन्होंने भूमिका में लिखा है : ‘‘न तो आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ को लेकर दूसरा नया इतिहास लिखा जा सकता है और न उसे छोड़कर। नए इतिहास के लिए शुक्ल जी का इतिहास एक चुनौती है…।’’ किन्तु उन्होंने इस चुनौती को स्वीकारते हुए आगे लिखा : ‘‘रचनात्मक साहित्य पुराने पैटर्न को तोड़कर नया बनता है, तो साहित्य के इतिहास पर वह क्यों न लागू हो?’’ ‘हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास’ साहित्येतिहास के लेखन के परिप्रेक्ष्य में यही नया पैटर्न ईजाद करने का साहसिक प्रयास है।

लेखक ने पुस्तक के पहले संस्करण की भूमिका में इस नए पैटर्न की ऐतिहासिक अनिवार्यता को स्पष्ट करते हुए लिखा : ‘‘शुक्ल जी के इतिहास का संशोधित और परिवर्द्धित संस्करण सन् 1940 में छपा था। उसके प्रकाशन के बाद 50 वर्ष से अधिक का समय निकल गया। इस अवधि में अनेकानेक शोध-ग्रन्थ छपे, नई पांडुलिपियाँ उपलब्ध हुईं, ढेर-सा साहित्य लिखा गया। नया इतिहास लिखने के लिए यह सामग्री कम पर्याप्त और कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। यह भी ध्यातव्य है कि शुक्ल जी का इतिहास औपनिवेशिक भारत में लिखा गया। अब देश स्वतंत्र है। उसमें लोकतांत्रिक व्यवस्था है। भारतीय लोकतंत्र की अपनी समस्याएँ हैं। सांस्कृतिक-सामाजिक संघर्ष हैं, इन्हें देखने-समझने का बदला हुआ नज़रिया है। इस नए सन्दर्भ में यदि पिष्टपेषण नहीं करना है, तो नया इतिहास ही लिखा जाएगा।’’

यह ‘दूसरा इतिहास’ इसी अर्थ में कुछ दूसरे ढंग से लिखा हुआ इतिहास है। शुक्ल जी के बाद के इतिहासों में अद्यतन। लेखक ने आदिकाल को अपभ्रंश काल कहा है और काव्य के साथ गद्य पर भी बेबाकी से विचार किया है। हिन्दी के भक्तिकाल का विवेचन अखिल भारतीय भक्ति-आन्दोलन के सन्दर्भ में किया गया है। भक्ति के उदय के कारणों पर भी नई दृष्टि से विचार किया गया है।

इतिहास का सबसे मौलिक अंश रीतिकाल का विवेचन है जिसमें हिन्दी के रीतिकाव्य के साथ ही उर्दू के रीतिकाव्य का भी समावेश कर लिया गया है। इसके अलावा रीतिकाव्य के विभाजन-विवेचन में भी इतिहासकार के नए सोच के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं।

आधुनिक काल का आरम्भ 1857 के प्रथम स्वाधीनता-संग्राम से मानते हुए लेखक ने इस काल का उपविभाजन ‘नवजागरण-युग’, ‘स्वच्छन्दतावाद-युग’ तथा ‘उत्तर-स्वच्छन्दतावाद-युग’ के नाम से किया है।

उत्तर-स्वच्छन्दतावाद-युग के अन्तर्गत प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता अैर उत्तर-आधुनिकतावाद का विवेचन मिलता है। गद्य-साहित्य का विवेचन करते समय लेखक ने हिन्दी साहित्य के आदिकाल से ही गद्य की विकास-परम्परा को रेखांकित किया है।

यह ग्रन्थ इतिहास की धारावाहिक निरन्तरता के साथ ही हिन्दी के प्रमुख साहित्यकारों और साहित्यिक कृतियों का मौलिक दृष्टि से मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। इसके साथ ही डॉ. बच्चन सिंह ने अपने निजी दृष्टिकोण तथा साहित्यिक समझ के आधार पर इसमें बहुत कुछ नया जोड़ा है जो इस कृति को सच्चे अर्थों में हिन्दी साहित्य का विशिष्ट इतिहास प्रमाणित करता है।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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