- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
हुल पहाड़िया
राकेश कुमार सिंह का यह पठनीय उपन्यास आदि विद्रोही तिलका मांझी की समरगाथा है।
इस विद्रोही नायक की परंपरा में आने वाले क्रांतिकारी आदिवासी अनेक नायकों में सिदो-कान्हू चांद-भैरव मुरमू भाइयों, बिरसा-मुंडा, टाना भगत आदि के स्वातंत्र्य संघर्ष को प्रारंभ में भले ही इतिहासकारों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ा, लेकिन बाद में वे भी उनके महत्त्व को स्वीकारने पर विवश हुए।
क्रांति के इस प्रथम अग्रदूत ने राजमहल की पहाड़ियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्यवादी रुख के विरुद्ध नगाड़ा बजाकर एक नई शुरुआत की थी। इस महानायक तिलका मांझी को इतिहास में वह स्थान नहीं दिया गया जिसके वह हकदार थे। समय-समय पर विवादों से घिरे रहे इस विद्रोही नायक को अनेक बार अपने होने के प्रमाण प्रस्तुत करने पड़े।
कथाकार राकेश कुमार सिंह ने बड़ी लगन के साथ इस महानायक की मुक्तिकामी चेतना के साथ उस समय के पहाड़िया समाज के दुख-दैन्य, मरणांतक संघर्ष और इस जनजाति की अपने काल में सार्थक हस्तक्षेप की गाथा को शब्द दिए हैं। कहना जरूरी है कि यहा कथारस, शिल्प, भाषा के साथ ही उपन्यासकार ने गहन प्रामाणिक शोध भी कथा में इस तरह प्रस्तुत किया है कि तिलका मांझी जन-जन में व्याप सकें।
यह उपन्यास इस महानायक पर एक बार फिर विचारोत्तेजक विमर्श की शुरुआत करेगा।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.