Hum Ameer Log

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Author: Nayantara sahgal

Availability: 5 in stock

Pages: 230

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 9789391494889

Language: Hindi

Publisher: Sahitya Academy

Description

हम अमीर लोग

प्रस्तुत उपन्यास हम अमीर लोग साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित कृति रिच लाइक अस (अंग्रेज़ी) का हिन्दी अनुवाद है। इसमें एक ओर भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की आशाओं, आकांक्षाओं, असफलताओं और अवसादों का विविधतापूर्ण ताना-बाना है तो दूसरी ओर उसकी आधी आबादी यानी स्त्रियों की दुर्निवार दुर्दशा का अंकन है। यह उपन्यास अपने समय से सीधा संवाद करता और समकाल में हस्तक्षेप करता एक प्रश्नाकुल आख्यान है। यह स्वतन्त्र और स्वायत्त भारत के आदर्शों और मूल्यों की पड़ताल ही नहीं करता, अप्रिय सवाल भी करता है। आपातकाल की ज़्यादतियों के हवाले से कथालेखिका ने अपने ही कुटुम्ब के उन प्रभावी लोगों का प्रामाणिक चित्रण किया है, जो चाहे-अनचाहे उन स्थितियों के अन्धाधुन्ध दोहन में लगे थे। ऊपरी तौर पर अत्यन्त शान्त, परिष्कृत और रुचिसम्पन्न परिवारों में भी परम्परा और आधुनिकता का द्वन्द्व कई प्रतिकूलताओं को जन्म देता है।

स्त्री की मर्यादा और पुरुष का वर्चस्व एक ऐसी अन्धी लड़ाई को जन्म देते हैं, जिसकी आँच और आग दीख नहीं पड़ती, लेकिन जो सब कुछ खत्म कर देती है। लेखिका ने बहुधा इस बात पर आपत्ति दर्ज की है कि भारतीय राजनीति में हल्की-फुल्की गोलाबारी को भी क्रान्ति का दर्जा दे दिया जाता है और किसी एक गुट द्वारा सत्तारूढ़ गुट को अपदस्थ कर स्वयं को स्थापित करने को ही राजनीतिक परिवर्तन मान लिया जाता है।

 

हम अमीर लोग

एक

उन दिनों मेज़बान जितना अधिक अमीर होता, ‘डिनर’ उतनी ही देर से लगाया जाता। देर से खाना खाना एक प्रकार से हैसियत की पहचान थी। जैसे देसी ह्विस्की से पाँच गुनी महँगी स्कॉच ह्विस्की पीना और बेहद महँगी विदेशी कार से सफ़र करना। वह होटल से ऐसी ही कार से आया था। यात्रा के आरम्भ में ही उसे समझा दिया गया था कि स्थानीय उच्च वर्ग के लोग अपने लिए बड़ी से बड़ी और नये से नये मॉडल की विदेशी कार की व्यवस्था करना अपनी शान समझते हैं, राष्ट्रपति या सेनाध्यक्ष या चोटी के प्रशासकों की तो बात ही क्या ! और फिर क्यों न हो ? हमें अपने रहन-सहन का तरीक़ा पसन्द है। हम उन पर यह आरोप नहीं लगा सकते कि उनका रहन-सहन हमारी तरह का क्यों नहीं। इसके अलावा, इसी से वे उन सब चीज़ों को ख़रीदने के लिए तैयार हो जाते हैं जो हम उन्हें बेचना चाहते हैं।

‘‘थोड़ी और चलेगी, मि. न्यूमन ?’’ मेज़बान की पत्नी ने पेशकाश की।

‘‘धन्यवाद, अभी मेरी पहले की थोड़ी बची है।’’

‘‘यह स्कॉच है।’’

उसने बड़ी विनम्रता से हाथ के इशारे से मना कर दिया।

इस कक्ष की अपनी कोई पहचान नहीं बनती थी। विगत की कहीं कोई गूँज नहीं थी, न ही आगत का कोई एहसास होता था। समूचे कक्ष में बढ़िया क्रिस्टल के गुलदस्ते, ऐशट्रे और कटोरे इतनी अधिक मात्रा में थे कि लगता था जैसे थोक में खरीदे गये हों। क्रिस्टल के गुलदस्तों में अनेक प्रकार के गुलाब सजाए गये थे। उसका मेजबान जो टेलीफोन सुनने कमरे से बाहर चला गया था, अब लौट आया था। वह वक्त से पहले बुढ़ा गया लगता था, लेकिन उसका गोलमटोल चेहरा उस पर फब रहा था। ‘‘एक और ड्रिंक मि. न्यूमन ?’’

‘‘धन्यवाद, अभी नहीं।’’

‘‘यह स्कॉच है।’’

‘‘कुछ देर बाद’’ उसने कहा।

मेज़बान की पत्नी एकहरे बदन की थी और हलकी सूती साड़ी में लिपटी हुई सोफे पर बैठी थी। उसकी कुहनी के पास एक ट्राली पर बहुत से ड्रिंकर और बोतलें रखी हुई थीं। मेहमान के मना करने पर ध्यान न देते हुए उसने अपने पास लगी घण्टी को दबाने के लिए हाथ उठाया। उसकी कलाई पर बँधा चमकीला कंगन लैम्प की रोशनी में चमक रहा था। घण्टी सुनकर एक सफ़ेद यूनीफ़ार्म पहने एक नौकर धीरे-धीरे फ़र्श पार करते हुए मेहमान के पास आया और उसने उसका गिलास भरकर पेश कर दिया।

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Authors

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Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2021

Pulisher

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