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Description
हम लोग
‘‘हो सकता है अश्वनी ! मेरे माफी माँगने के नाटक पर आपके चाचा जी मुझे माफ भी कर दें और फिर हमारी शादी भी हो जाए-मगर यह तो सिर्फ एक समझौता ही हुआ ना-अपने स्वार्थ की खातिर किया गया समझौता।’’
‘‘गुणवन्ती ! तुम समझने की कोशिश तो करो।’’ ‘‘आपको पाना ख्वाब है मेरा, अपने ख्वाबों में मैंने सदा ही आपको चाहा है, मगर आपको पाने के लिए अपने आपको धोखा नहीं दे सकती मैं…’’
– इसी उपन्यास से
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2014 |
Pulisher |
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