- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
हम सभ्य औरतें
युवा पत्रकार और लेखिका मनीषा की ‘हम सभ्य औरतें’ एक लंबी जिरह है। उत्पीड़ित, दमित और शिकार बनाई जा रही औरत यहां ‘विषय’ है और स्वयं अपना ‘विमर्श’ भी। वह दैनिक है और इतिहास भी। अत्याचार की शिकार है और प्रतिवाद की पुकार भी।
इन लेखों के बीच से जो ‘औरत’ उभरती है, वह समकालीन स्त्रीत्ववादी विमर्श से उत्पन्न प्रश्नावली है। अनंत बलात्कारों, दहेज-दहनों, बिस्तर-वधों और गली-नुक्कड़, घर-कार्यालय के उत्पीड़नों के दैनिक उदाहरणों पर व्यंग्य के लगातार चाबुक फटकारता, उनका प्रतिरोध करता स्त्रीत्ववादी न्याय की पुकार करता ग्रह अत्यंत पठनीय गद्य समकालीन स्त्री-प्रश्नों को नितांत नयी आकुलता और तीव्रता प्रदान करता है।
मनीषा के इस विमर्श की सबसे बड़ी ताकत है उनकी वह तीखी निगाह जो समाज के ढंके-छिपे अंधेरे कोनों अंतरों में नारी स्त्री-उत्पीड़न और दमन के चिन्हों को अचानक देख लेती है और उतनी ही दो टूक, बलौस, करारी बेबाकी से उनकी सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक-सांस्कृतिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण करते हुए एक ऐसे समाज की मांग करती है जहां स्त्री-पुरुष के बीच पूरा न्याय और संतुलन हो सकता है।
अत्यंत प्रवाहपूर्ण और पठनीय गद्य लेखिका मनीषा समकालीन हिंदी के स्त्रीत्ववादी विमर्श में एक अनिवार्य और महत्वपूर्ण नाम है। महिला सशक्तीकरण वर्ष के बाद यह एक अनिवार्य रूप से पठनीय किताब है जो हर पाठक-पाठिका को स्त्री सशक्तीकरण के उपकरण प्रदान करती है।
– सुधीश पचौरी
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2008 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.