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इबलीस
विषय प्रवेश
ईसाइयों की पवित्र पुस्तक अंजील में लिखा है-अदन (स्वर्ग का एक उद्यान) में परमात्मा ने अपनी सर्वोत्कृष्ट कृति आदम को बनाया। तदनन्तर उसका साथ देने के लिए एक स्त्री हव्वा को बना दिया। दोनों को उद्यान में रहते हुए यह आज्ञा दे दी कि वे उस उद्यान के सब फल खा सकते हैं, परन्तु ज्ञान-वृक्ष का फल न खाएँ। यदि खाएँगे तो स्वर्ग में नहीं रह सकेंगे।
परमात्मा यह आज्ञा देकर अपने घाम को चला गया। उसके चले जाने के उपरान्त वहाँ का रहने वाला एक जन्तु साँप आया और उनसे पूछने लगा,
“वह बूढ़ा व्यक्ति क्या कहता था ?’’
आदम ने कहा, “कहता था कि हम इंस उद्यान के सब फल खा सकते हैं। केवल इस वृक्ष के फल न खायें।”
‘‘क्यों ?”
“कहता था कि इसके पाने से हम ज्ञान-वान हो जायेंगे।”
“बहुत घूर्त है। तुम्हें यहाँ की परम स्वादिष्ट श्रौर उपकारी वस्तु खाने से मना कर गया। इसे खाने से तुम्हारी आँखें खुल जायेंगी, तुम्हें सब कुछ समझ में आने लगेगा। मैं कहता हूँ तुम्हें वह फल खाना चाहिये और ज्ञान लाभ करना चाहिए।”
आदम साँप का कहना मानना नहीं चाहता था, परन्तु हव्वा ने स्वयं वह फल खाया श्रौर उसे भी खाने का आग्रह किया। उसके कहने पर आदम ने वह फल खाया।
खाते ही दोनों को ज्ञान हों गया। अंजील में लिखा है कि वे समझ गए कि वे नग्न हैं। अतः उन्होंने अंजीर के पत्तों का अधो-वस्त्र बनाया और पहन लिया।
अगली बार जब परमात्मा आया तो आदम और हव्वा दिखाई नहीं दिए। परमात्मा ने उनको पुकारा। वृक्षों की ओट में छुपी हव्वा ने कहा कि वह नग्न है, उसे पेड़ों से बाहर आते हुए लज्जा प्रतीत होती है।
परमात्मा समझ गया कि इन्होंने ज्ञान वृक्ष का फल खाया है। अतः उसने डाँटकर कहा कि उन्होंने वर्जित फल खाया है, इस कारण उनको स्वर्ग से निकाल दिया जाता है और वे पृथ्वी पर भेज दिए गए। हव्वा को शाप दिया कि वह अब बच्चे जनेगी और आदम को शाप दिया कि उसकी साँप से शत्रुता होगी। साँप उसे डसेगा और वह साँप का सर कुचलेगा।
आदम और हव्वा तब पृथ्वी पर पुरुष और स्त्री के रूप में रहने लगे। साँप (इबलीस-ल्युसिफर) परमात्मा का प्रतिद्वन्द्वी हो गया।
दोनों मनुष्य को विरोधी दिशाओं में ले जाने का यत्न कर रहे हैं। परमात्मा पूर्व की ओर ले जाना चाहता है और इबलीस पश्चिम की ओर। तब से ही मनुष्य पूर्व और पश्चिम के विवाद में पड़ा हुआ है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2000 |
Pulisher |
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