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Description
इतिहास समाज और परंपरा
हमारे उज्ज्वल भारतवर्ष की गौरवशाली संस्कृति, परंपरा और इतिहास का विश्व सभ्यता में एक अलग ही महत्व और पहचान रहा है। किंतु पश्चिम के विद्वानों की दुरभिसंधि और कुटिल ‘श्रेष्ठता’ दंभ को हमारे द्वारा जाने-अनजाने स्वीकार कर लेने के कारण भारतवर्ष की उज्ज्वल और श्रेष्ठ परंपराओं व स्वदेशी नीतियों से हम स्वयं ही अनजान और अपरिचित बने रहे। सच तो यह है कि भारत में अंग्रेजों के आने से बहुत पहले से ही हमारा राष्ट्र कृषि, शिक्षा, उद्योग, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में विश्व भर में उन्नत था और अपना उत्कृष्ट स्थान रखता आया है। किंतु हमारी स्वयं की चेतना और जागरूकता की कमी तथा पश्चिम की कपटपूर्ण, धूर्त और चालाक किस्म की चालबाजियों के कारण हमने स्वयं को हीन और पश्चिम को महान मान लिया। ‘इतिहास, समाज और परंपरा’ शीर्षक इस पुस्तक में मूर्धन्य विद्वान, चिंतक और इतिहासकार धर्मपाल के समय-समय पर लिखे बीस आलेखों के साथ ही उनकी कुछ चुनिंदा कृतियों की विद्वानों द्वारा की गई कतिपय समीक्षाओं को भी सम्मिलित किया गया है। धर्मपाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागर करते परिचयात्मक किस्म के कुछ आलेखों एवं धर्मपाल को श्रद्धा अर्पण स्वरूप लिखे कुछ लेखों को सम्मिलित करने से पुस्तक की उपादेयता कुछ और बढ़ गई है। इस पुस्तक को पढ़ना भारत की गौरवशाली सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, परंपरा और समाज व्यवस्था को जानना-समझना भी है, जो आज की नई पीढ़ी के लिए आवश्यक ही नहीं, अपरिहार्य भी प्रतीत होता है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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