Jaadu Ka Deepak
Jaadu Ka Deepak
₹65.00 ₹55.00
₹65.00 ₹55.00
Author: Srikant Vyas
Pages: 80
Year: 2018
Binding: Paperback
ISBN: 9788174830685
Language: Hindi
Publisher: Rajpal and Sons
- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
जादू का दीपक
1
मिस्त्र के काहिरा नामक शहर में एक सौदागर रहता था उसका नाम था हसन। वह बहुत अमीर था। रुपये-पैसे, हीरे-जवाहरात तो उसके यहां ढेरों थे। ज़मीन-जायदाद की भी उसे कमी नहीं थी। अपने ज़माने में वह सबसे बड़ा अमीर माना जाता था।
सौदागर का एक लड़का था। वह बड़ा सुन्दर था। जब वह सड़क से निकलता था तो लोग उसे देखते रह जाते थे। उसका नाम था अली। घर में उस्ताद रखकर अली को सब विषयों की शिक्षा दी गई। एक मौलवी साहब उसे कुरान पढ़ाते थे, तो दूसरे उसे हिसाब-किताब की शिक्षा देते थे।
कुछ ही दिनों में वह पढ़-लिखकर तैयार हो गया और अपने पिता के साथ तिजारत में हाथ बंटाने लगा। हसन ने उसे दूर-दूर व्यापार के लिए भेजा और कुछ ही दिनों में बहुत अच्छा सौदागर बना दिया। कुछ दिनों बाद हसन बीमार पड़ा। उसकी बीमारी बढ़ती ही गई। यहां तक कि उसे लगा कि अब बचना मुश्किल है।
उसने अपने लड़के को पास बुलाया और कहा, ‘‘बेटा, यह दुनिया, जिसमें हम लोग रहते हैं, एक न एक दिन खत्म हो जाएगी। लेकिन वह दुनिया, जहां हम मरने के बाद जाते हैं और जहां खुदा का राज है, कभी खत्म नहीं होती। मैं अब उसी दुनिया में जाने की तैयारी कर रहा हूं। मेरी मौत करीब है। चलते-चलते मैं तुम्हें दो-एक बातें कहना चाहता हूं। अगर तुम मेरी सीख के मुताबिक चलोगे तो जिन्दगी-भर आराम से रहोगे और तुम्हें किसी बात की तकलीफ नहीं होगी। लेकिन अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो बाद में पछताओगे और तुम्हें बहुत दुख उठाना पड़ेगा।’’
लड़का बोला, ‘‘नहीं अब्बाजान, भला यह कैसे हो सकता है कि मैं आपकी बात न मानूँ ! आप जो कुछ कहेंगे मेरे भले के लिए ही तो कहेंगे। मैं आपकी बात को खूब गौर से सुनूंगा और हमेशा याद रखूंगा।’’
‘‘हां बेटा, मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। सुनो, मैं तुम्हारे लिए इतनी बड़ी जायदाद छोड़कर जा रहा हूं। इतनी धन-दौलत, सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात, यह सब तुम्हारा हो जाएगा। अगर तुम रोज़ चार मोहरें खर्च करो, तो यह धन कभी खत्म नहीं हो सकता।
लेकिन बेटा, तुम खुदा को कभी मत भूलना। गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करना। सिर्फ ऐसे ही लोगों का साथ करना जो अच्छे और भले हों और समझदार हों। कभी लालच मत करना और बुरी आदतों से बचना। अपने नौकर-चाकर, बच्चे और बीवी पर दया रखना।’’
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.