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जाति का चक्रव्यूह और आरक्षण
आज़ादी की लड़ाई के दौरान ही यह मुद्दा बार-बार उठा कि आज़ाद भारत में अछूत कही जाने वाली जातियों की स्थिति क्या होगी ? फुले-पेरियार-अंबेडकर के आंदोलनों ने जाति प्रश्न को प्रमुखता से उभारा तो गांधी का छुआछूत विरोधी आंदोलन इसका ही एक और आयाम था।
आज़ादी के बाद संविधान बना तो दलितों-आदिवासियों के समुचित प्रतिनिधित्व के लिए नौकरियों और संसद में आरक्षण की जो व्यवस्था की गई वह शुरू से ही वर्चस्वशाली जातियों के प्रतिनिधियों की आँखों की किरकिरी बनी रही। फिर नब्बे के दशक में पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए मंडल आयोग की अनुशंसाओं के ख़िलाफ़ तो हिंसक आंदोलन भी हुए। अभी हाल में 2022 जब मै आरक्षण लागू हुआ तो इसे आरक्षण की मूल भावना के ख़िलाफ़ बताया गया।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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