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Description
जाली किताब
‘जाली किताब’ अपने ढंग का पहला और अकेला उपन्यास है। इसमें आलोचना भी है और आलोचना की आलोचना भी। हिन्दी का इतिहास भी है। भारत देश के इतिहास की छवियाँ भी इसमें हैं, लोक और शास्त्र भी।
किताब पर किताब पर किताब—लेखक के अनुसार, यही इस उपन्यास का कथानक है। एक महाकाव्य लिखा गया ‘पृथ्वीराज रासो’। कुलीन विद्वानों ने उसे नितान्त साहित्येतर कारणों से जाली कह दिया। ‘रासो’ की प्रतिष्ठा को जनमानस में अखंड रखने के लिए ‘चंद छंद बरनन की महिमा’ नामक ग्रन्थ की रचना हुई जिसे खड़ी बोली गद्य की प्रथम कृति कहा जाता है। इसे भी विद्वज्जन ने जाली ठहरा दिया।
इन्हीं दोनों पुस्तकों को, जो अपनी अन्तर्वस्तु, कल्पनाशील रचनात्मकता और शिल्प के चलते आज भी बची हुई हैं, उक्त आरोपों से बरी करने के लिए यह किताब लिखी गई है, जो इससे पहले कि पंडित कुछ बोलें, ख़ुद ही ख़ुद को जाली कह रही है।
यह आलोचना होती, लेकिन उपन्यास हो गई। इसमें किताबें ही पात्र हैं और उन किताबों के पात्र भी यहाँ इसी के पात्र हैं। उन किताबों को लिखनेवाले भी इसके पात्र हैं, और इस किताब का लेखक ख़ुद भी।
इस किताब से गुज़रना एक बेहतरीन गद्य से गुज़रना है, उपन्यास की एक नई क़िस्म को जानना भी और हिन्दी साहित्येतिहास के कुछ अहम इलाक़ों की पुनर्यात्रा भी। पाठों, विधाओं और काल की सीमाओं का अतिक्रमण करती यह किताब कृष्ण कल्पित जैसी औघड़ मेधा से ही सम्भव थी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
Language | Hindi |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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