- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
झंझा भवन
1847 में प्रकाशित एमिली ब्रॉण्टे का एकमात्र उपन्यास, जिसका कथा-विन्यास, चरित्र-संयोजन, स्थापत्य और भाषिक वैविध्य यॉर्कशायर ‘लोकेल’ का ऐसा सटीक और सघन बिम्ब प्रस्तुत करता है कि हीथक्लिफ़ कैथी के जटिल स्नेह-बंध के ठोस भौतिक और गहरे अर्थ में आधिभौतिक आयाम पाठक के मन में आजीवन गूँजते रहते हैं। प्रमा (इंसटिंक्ट) को नैतिक और सामाजिक आयोजनों के ऊपर प्रतिष्ठित करने के शुद्ध रूमानी दर्शन और ऊहापोह-भरे क्लिष्ट कथानक के बावजूद यह उपन्यास मेलोड्रैमेटिक नहीं बनता : क्लासिक भाषिक विनियोग और भिन्न कथावाचकों के आयोजन तथा मुख्य एवं गौण पात्रों द्वारा तरह-तरह के दृष्टिकोणों के सूक्ष्म संयोजन की विशिष्ट तकनीक के कारण। यह अंग्रेजी की एक ऐसी कालजयी औपन्यासिक कृति है, जिसे सॉमरसेट मॉम ने विश्व के दस सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में एक माना था।
प्रस्तुत उपन्यास झंझा भवन एमिली ब्रॉण्टे लिखित कालजयी उपन्यास वुदरिंग हाइट्स का हिन्दी अनुवाद है।
अस्तर पर छपे मूर्तिकला के प्रतिरूप में राजा शुद्धोदन के दरबार का वह दृश्य, जिसमें तीन भविष्यवक्ता भगवान बुद्ध की माँ-रानी माया के स्वप्न की व्याख्या कर रहे हैं, इसे नीचे बैठा लिपिक लिपिबद्ध कर रहा है। भारत में लेखन-कला का सम्भवतः सबसे प्राचीन और चित्रलिखिति अभिलेख।
1
मैं अपने मकानमालिक के यहाँ की यात्रा से अभी-अभी लौटा हूँ—वह मेरा एकाकी पड़ोसी है जिससे मेरी शान्ति सन्दिग्ध हो सकती है। यह है एक सुन्दर देहात। पूरे इंग्लैण्ड में, समाज की हलचल से इस क़दर दूर, कोई और परिवेश मैं ढूँढ़ लेता, ऐसा मुझे नहीं लगता। आदमी से भरपूर नफरत करने वालों का स्वर्ग : निर्जनता को आपस में बाँट लेने वाला उपयुक्त जोड़ा-मैं और मि. हीथक्लिफ़। कमाल का आदमी ! उसने शायद ही कल्पना की होगी कि उसकी ओर मेरा हृदय किस तरह उमड़ रहा था—ख़ासकर तब से जब से मैंने उसकी काली आँखों को भौंहों के नीचे सन्देह से सिमटते देखा और अधिकार-सजग संकल्प से उसकी अँगुलियाँ जैकेट के भीतर दूर से दूरतर जाकर ही थम सकीं।
‘‘श्रीमान्….हीथक्लिफ़ !’’….मैंने छेड़ा।
जवाब में सिर्फ़ सिर हिला।
‘‘महाशय, मैं लौकवुड हूँ, आपका नया किरायेदार। आने के बाद आपके पास पहुँचना अपनी प्रतिष्ठा समझता हूँ और अपनी आशा व्यक्त करना चाहता हूँ कि थ्रशक्रॅश चक में टिकने की मेरी कोशिश से आपको कष्ट न हो : मैंने सुना कल आप….’’
‘‘थ्रशक्रॅस मेरा अपना है, हज़रत’’, उसने नज़र चढ़ाते हुए बीच में ही टोक दिया, ‘‘कोई मुझे तकलीफ़ दे, यह मुझे गवारा नहीं….अन्दर आइए !’’
यह ‘अन्दर आइए’ दाँत पीसकर कहा गया था—कुछ ऐसे जैसे कहते हैं—‘जहन्नुम में जाओ।’ शब्द के साथ सहानुभूतिपरक गतिशीलता उस फाटक ने भी नहीं दर्शाई जिस पर वह झुका था; और मैंने सोचा उस घटना ने मुझमें आमन्त्रण स्वीकार कर लेने की निश्चयात्मकता ला दी। मुझे वैसे आदमी में दिलचस्पी हुई जो मुझसे भी कहीं ज़्य़ादा एकान्तपसन्द था।
जब उसने देखा, मेरे घोड़े की छाती चहारदीवारी को कभी-कभी ठेल रही है तो उसे बेलगाम करने को उसने हाथ फैला दिये, और तब अचानक पगडण्डी पर वह मुझसे आगे हो गया। हमारे सहन में दाख़िल होते-होते उसने पुकारा—‘‘जोसिफ़, मि. लौकवुड का घोड़ा थामो और थोड़ी शराब लाओ।’’
इस दुहरी आज्ञा से यही झलकता था कि हीथक्लिफ़ के यहाँ पूरे निकम्मे दास-दासियों का डेरा-डण्डा है। इसलिये कुछ आश्चर्य नहीं कि राह के चौरस चौकोर पत्थरों के बीच घास उपजती है और झुरमुटतराश हैं सिर्फ़ मवेशी।
जोसिफ़ एक बुज़ुर्ग, नहीं बूढ़ा आदमी था : शायद बहुत बूढ़ा, फिर भी तन्दुरूस्त और मज़बूत। ‘‘भगवान भला करे’’—मेरा घोड़ा मुझसे लेता हुआ, चिड़चिड़ाहट भरी नाखुशी के साथ दबी ज़बान वह अपने आप से बोला—बीच ही में मेरे चेहरे पर ऐसी खरास-भरी नज़र डालता हुआ कि मैंने दरियादिली से अटकल लगाई कि अपना खाना हज़म करने के लिए भी उसे खुदाई मदद की ज़रूरत ज़रूर होती होगी। और, उसके पवित्र उद्गार का मेरे औचक आ जाने से कोई वास्ता नहीं था।
‘झंझा भवन’ यानी ‘वुदरिंग हाइट्स’1 मि. हीथक्लिफ़ के निवास का नाम है। ‘वुदरिंग’ है एक सार्थक प्रान्तीय विशेषण, ‘वुदरिंग’ है ब्योरा उस वायुमण्डलीय उथल-पुथल का जो उस भवन को तूफ़ानी मौसम में निरावरण रखती है। शुद्ध स्वास्थ्यप्रद समीर उन्हें निश्चय ही सर्वदा ऊपर मिलता होगा; मुँडेरों के ऊपर लहराती हुई उत्तराई की शक्ति का अनुमान किसी को भी हो सकता है : मकान के अन्त में अवरूद्ध ऊँचाई वाले देवदारू के अत्यधिक झुकान से और सूर्य से भीख माँगते हुए दृढ़ कंटकों के एक तरफ़ फैलाव से। भाग्यवश इस हवेली के शिल्पी में इसे सुदृढ़ बनाने की दूरदर्शिता थी : सँकरी खिड़कियाँ दीवार में गहराई तक धँसी हैं और कोने रक्षित हैं, निकले हुए बड़े-बड़े पत्थरों से।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.