- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
कागज की नाव
उर्दू और हिन्दी में समान रूप से समादृत कथाकार कृश्न चंदर का उपन्यास काग़ज़ की नाव उनकी सशक्त लेखनी का मुखर साक्षी है। एक दस रुपये के नोट की आत्मकथा के माध्यम से उन्होंने इस उपन्यास में समाज के विभिन्न पक्षों के विभिन्न अंगों का चित्र बड़ी सरसता एवं स्पष्टता से खींचा है। आज की जीवन-प्रणाली में नोट इतना प्रधान हो गया है कि उसके आगे सभी अन्य वस्तुएँ धुँधली नजर आती हैं। किसी की खुशी का वादा एक नोट है, किसी की मुहब्बत का धोखा नोट है, किसी की मजबूर मेहनत का एक पल नोट है, तो किसी की प्रेमिका की मुस्कान भी एक नोट ही है।
सच तो यह है कि संसार का हर व्यक्ति अपने जीवन के प्रति क्षण को नोट – यानी काग़ज़ की नाव में खेये चला जा रहा है। शायद यह नोट काग़ज़ का एक पुर्जा नहीं, इस युग की सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु है। निस्संदेह, आज के युग-यथार्थ की अगर कोई शक्ल है तो यही काग़ज़ की नाव। कृश्न चंदर की प्रवाहमयी भाषा-शैली ने इसे जिस तेजी से घटनाओं की उत्ताल तरंगों पर तैराया है, उसका रोमांच बहुत गहरे तक पाठकीय भाव-संवेदन का हिस्सा बन जाता है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
Reviews
There are no reviews yet.