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कही ईसुरी फाग
ऋतु डॉक्टर नहीं बन पाई क्योंकि रिसर्च गाइड प्राध्यापक प्रवर पी.के. पांडेय की दृष्टि में ऋतु ने ईसुरी पर जो कुछ लिखा था, वह न शास्त्र-सम्मत था, न शोध-अनुसन्धान की जरूरतें पूरी करता था। वह शुद्ध बकवास था क्योंकि ‘लोक’ था।
‘लोक’ में भी कोई एक गाइड नहीं होता। लोक उस बीहड़ जंगल की तरह होता है जहाँ अनेक गाइड होते हैं। जो जहाँ तक का रास्ता बता दे वही गाइड बन जाता है-कभी-कभी तो कोई विशेष पेड़, कुआँ या खंडहर ही गाइड का रूप ले लेते हैं। ऋतु भी ईसुरी-रजऊ की प्रेम-कथा के ऐसे ही बीहड़ों के सम्मोहन की शिकार है। बड़ा खतरनाक होता है जंगलों, पहाड़ों और समुद्र का आदिम सम्मोहन…हम बार-बार उधर भागते हैं किसी अज्ञात के ‘दर्शन’ के लिए…‘कही ईसुरी फाग’ भी ऋतु के ऐसे ही भटकावों की दुस्साहसिक कहानी है।
शास्त्रीय भाषा में ईसुरी शुद्ध ‘लम्पट’ कवि है-उसकी अधिकांश फागें एक पुरुष द्वारा स्त्री को दिए शारीरिक आमन्त्रणों का उत्सवीकरण है। जिनमें श्रृंगार काव्य की कोई मर्यादा भी नहीं है। इस उपन्यास का नायक ईसुरी है, मगर कहानी रजऊ की है-प्यार की रासायनिक प्रक्रियाओं की कहानी जहाँ ईसुरी और रजऊ दोनों के रास्ते बिल्कुल विपरीत दिशाओं को जाते हैं। प्यार बल देता है तो तोड़ता भी है…
सिद्ध संगीतकार कविता की किसी एक पंक्ति को सिर्फ अपना प्रस्थान-बिन्दु बनाता है-बाकी ठाठ और विस्तार उसका अपना होता है। बाजूबंद खुल-खुल जाए में न बाजूबंद रात-भर खुल पाता है, न कविता आगे बढ़ पाती है क्योंकि कविता की पंक्ति के बाद सुर-साधक की यात्रा अपने संसार की ऊँचाइयों और गहराइयों के अर्थ तलाश करने लगती है। मैत्रेयी पुष्पा की यह कहानी उसी आधार का कथा-विस्तार है-शास्त्रीय दृष्टि के खिलाफ़ अवैध लोक का जयगान।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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