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Description
कामयोगी
काल : चौथी सदी, भारत का स्वर्णयुग। स्थान : वाराणसी के बाहर जंगलों में बना एक आश्रम। ‘कामसूत्र’ के रचयिता वात्स्यायन हर सुबह अपने एक युवा शिष्य को अपने बचपन और युवावस्था की कहानियाँ सुनाते हैं। यह शिष्य इस महान ऋषि की जीवनी लिखना चाहता है। वात्स्यायन के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारियाँ उपलब्ध हैं। वह युवा अध्येता इन जानकारियों को अपने मस्तिष्क में दर्ज करता जाता है। साथ ही कामसूत्र के उन प्रासंगिक श्लोकों को भी उनमें गूँथता जाता है, जिन्हें उसने कंठस्थ कर लिया।
जो कथा उभरती है, वह अद्भुत है। वात्स्यायन की माँ अवंतिका और मौसी चंद्रिका कौशाम्बी के एक वेश्यालय में प्रसिद्ध गणिकाएँ हैं। उनसे और उनके विभिन्न प्रेमियों से वात्स्यायन कामकलाओं की पहली छवियाँ देखते हैं, जो उनके मन पर अमिट छाप छोड़ती हैं। कक्कड़ अपनी विशिष्ट सूक्ष्म दृष्टि से इस कथा के उन अनगिनत पात्रों के मन की गहराइयों तक पहुँचते हैं, जो अपनी यौन पहचान पाने के विभिन्न चरणों से गुजर रहे हैं। इस तरह वासना और कामुकता का सशक्त आख्यान आकार लेता है, जिसमें प्राचीन कला का सम्मोहन भी है और आश्चर्यजनक विसंगतियाँ भी।
सुधीर कक्कड़ ने वात्स्यायन के ग्रंथ के उद्धरणों का उपयोग करते हुए उनके जीवन और उनके दौर को बुना है…ऐसा करते हुए उन्होंने मनोविश्लेषणात्मक तकनीक, कल्पनाशीलता और उल्लासपूर्ण गद्य का इस्तेमाल करते हुए अनूठे शिल्प का प्रयोग किया है…अद्भुत रूप से पठनीय पुस्तक…
- खुशवंत सिंह
उत्तर-आधुनिक कथा विधा जबकि पुराने पाठ को फिर से लिखने की कोशिश कर रही है, कक्कड़ की पुस्तक उसे समाहित करने का प्रयास करती है। इसीलिए, ‘कामसूत्र’ के बारे में कुछ नहीं जानने के बावजूद इस पुस्तक का आनंद उठाया जा सकता है।
- बिब्लयो
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2007 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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