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Description
कश्मीर जीत में हार
‘जीत में हार’ विशेषतः जम्मू और सामान्यतः कश्मीर तथा विराट् राष्ट्र पर पाकिस्तानी आकमणों का प्रौढ़, गम्भीर किन्तु अतीव रोचक वृत्त प्रस्तुत करने वाला ऐसा उत्कृष्ट ग्रन्थ है, जिसे एक ऐसे लेखक ने लिखा है जो विशेषतः जम्मू-कश्मीर और सामान्यतः विराट् राष्ट्र के अधिकांश घटनाचक्रों से सम्बद्ध रहे हैं। उनके द्वारा प्रस्तुत वृत्त यत्र-तत्र सर्वत्र वैयक्तिक स्पर्शों और अनुभूतियों से संपृक्त है। भाषा स्तरीय होते हुए भी प्रसाद-गुण से सम्पन्न है। आपातस्थिति के मध्य कारागार में लिखा गया यह ग्रन्थ भारत की विदेश-नीति की अनेकानेक असफलताओं पर प्रभावी और मौलिक प्रकाश डालता है। प्रोफ़ेसर बलराज मधोक इतिहास के विद्वान प्राध्यापक और सुविख्यात राजनीतिक हैं। हिन्दी और अंग्रेज़ी में उनके द्वारा लिखित अनेक ग्रन्थ सक्रिय और सक्षम व्यक्तित्व के कारण और अधिक प्रभावी और महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक नेता, जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक और मन्त्री, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक, भारतीय जनसंघ के एक संस्थापक और अध्यक्ष तथा संसद (लोकसभा) के दो बार सदस्य रह चुकने वाले प्रोफ़ेसर बलराज मधोक देश के इतिहास में एक निश्चित स्थान बना चुके हैं। वे हृदय से देश-भक्त मस्तिष्क से राजनीतिज्ञ और आत्मा से आर्य हैं। स्पष्टवादिता और साहस के कारण वे अनेक बार कारागार की यातनाएँ झेल चुके हैं। जब वे युवक थे, तभी शेख अब्दुल्ला, ने उन्हें और उनके कारण उनके परिवार के सदस्यों को भी जम्मू-कश्मीर से निष्कासित कर दिया था। अतएव, संघर्ष उनकी प्रकृति का अंग बन गया है। जो उनके निश्छल, सरल और वीरतापूर्ण व्यक्तित्व से गहराई के साथ परिचित नही हैं, वे चाहे जो कहें, किन्तु उनका त्याग, उत्सर्ग और देश-प्रेम आज भी जानने वालों के मस्तक झुकवा देता है और कल भी झुकवाएगा, इसमें सन्देह नहीं।
‘जीत में हार’ का अभिप्राय 1947, 1965 और 1971 के पाक-आक्रमणों में भारतीय सेना की बलिदानमयी जीतों और, अनवरत रूप से, भारतीय शासकों की राजनैतिक मोर्चों पर हारों से सम्बद्ध है। सैनिक दृष्टि से प्रत्येक बार सफलता पाने पर भी राजनैतिक दृष्टि से हम प्रत्येक बार हारते रहे। 1947 के आक्रमण में पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर राज्य (उसके भारत में विलय के कारण तत्त्वतः और वस्तुतः भारत) का तीस हज़ार वर्गमील से अधिक क्षेत्र हड़प ले गया, हजारों हिन्दू मारे गए, हजारों स्त्रियों ने जौहर किये, लाखों हिन्दू अपने वतन से खदेड़ दिए जाने के कारण शरणार्थी बने, उनकी करोड़ों की सम्पत्ति लुट गई और बड़ी संख्या में सैनिकों ने बलिदान दिये, राष्ट्र की अपार वैत्तिक क्षति हुई। इस पर भी, संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत अभियुक्त ही बना रहा ! 1965 के दो आक्रमणों में पहले के कारण पाकिस्तान कच्छ के रण का एक भाग पा गया और बाद में भी उसको लाभ ही रहा।
1971 के युद्ध में बाँगलादेश तो बना पर उसमें हुए घटनाचक्र के कारण भारत को कोई लाभ नहीं हुआ और पाकिस्तान शिमला-समझौते में लाभ भी उठा गया। इन मुख्यतः तीन और सामान्यतः चार युद्धों का जो गम्भीर लेखा-जोखा प्रोफ़ेसर बलराज मधोक ने प्रस्तुत किया है। वह आँखें खोलने वाला है। सामान्य व्यक्ति तो दूर, अनेक अच्छे-अच्छे विद्वानों नेताओं और पत्रकारों तक को इन युद्धों में हुई राष्ट्रीय क्षति का सम्यक् बोध नहीं है। अतएव, इन पर एक गम्भीर ग्रन्थ लिखकर प्रो. मधोक ने राष्ट्र की महत्त्वपूर्ण सेवा की है। हिन्दी में इस प्रकार की मौलिक पुस्तकें नहीं के बराबर हैं, क्योंकि सांस्कृतिक पराधीनता के अब भी विद्यमान होने के कारण अधिकारी विद्वान, नेता और पत्रकार इत्यादि अंग्रेज़ी में ही लिखने में गौरव का अनुभव करते हैं।
जम्मू-क्षेत्र के अनेक नगरों, उपनगरों और ग्रामों के पतन के समय प्रो. मधोक जम्मू नगर में विद्यमान थे। कालान्तर में एक ख्यातिप्राप्त राष्ट्रीय नेता होने के कारण वे सारे ऐतिहासिक घटनाचक्रों का निकट से अध्ययन करते रहे। इन कारणों से ‘जीत में हार’ एक अतीव प्रामाणिक और प्रशस्त ग्रन्थ बन गया है। यह कहा जा सकता है कि सैनिक और आर्थिक दृष्टियों में कमज़ोर होने कारण भारतीय नेतृत्व के समक्ष अनेक विवशताएँ भी थीं। एक सीमा तक अब भी हैं। प्रो. मधोक का भारत की विदेश-नीति की असफलताओं का विवेचन काफ़ी दूरी तक तथ्यपूर्ण है। उन्होंने वस्तुपरक दृष्टिपरक दृष्टिकोण की उपेक्षा नहीं की, भले ही एक प्रखर राष्ट्रवादी होने के कारण वे यत्र-तत्र उग्र हो गए हों।
प्रो. मधोक अपने ‘खण्डित कश्मीर’, जीत या हार’, ‘डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी-एक जीवनी’ तथा कश्मीर सेंटर ऑफ़ न्यू अलाइन्मेंट्स’ जैसे ग्रन्थों के लेखक होने के कारण कश्मीर-विषयक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लेखक कहे जा सकते हैं। ‘जीत में हार’ इसी श्रृंखला की एक सशक्त कड़ी है। जब कभी ‘हिन्दी में कश्मीर सम्बन्धी साहित्य’ तथा ‘हिन्दी में विभाजन-सम्बन्धी साहित्य’ जैसे विषयों पर शोध-ग्रन्थ लिखे जाएँगे, प्रो. मधोक का स्मरण गौरव से किया जाएगा।
मातृभाषा पंजाबी होने पर भी, अंग्रेज़ी पर पूर्ण अधिकार रखते हुए भी, उन्होंने राष्ट्रभाषा में अनेक ग्रन्थ रचकर उसके भण्डार की श्री वृद्धि की है। उनकी हिन्दी में पंजाबी के शब्द, मुहावरे और उसकी कहावतें प्रशस्य रूप से पिरोई गयी हैं, जिससे राष्टभाषा के आयाम व्यापक हुए हैं, पंजाबी की प्राणवत्ता से उसका परिचय हुआ है। पंजाब के अनेक सपूतों ने हिन्दी की सेवा की है। सुदर्शन यशपाल अज्ञेय अश्क मोहन राकेश इत्यादि की संख्या काफी बड़ी है। राजनैतिक और ऐतिहासिक विषयों पर अनेक मौलिक ग्रन्थ लिखने के कारण, इस दिशा में प्रो. मधोक का भी एक निश्चित स्थान जाना चाहिए। ‘पंजाब से सम्बद्ध हिन्दी-लेखक’ जैसे किसी भी शोध-ग्रन्थ में उनका उल्लेख अवश्य किया जाएगा। मैं आशा और अनुरोध करता हूँ कि प्रो. मधोक हिन्दी में अधिकाधिक ग्रन्थ रचें।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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