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कविता : पहचान का संकट
वैसे तो पहचान के संकट की शिकार साहित्य की सभी विधाएँ हैं, लेकिन कविता की आलोचना में वह सर्वाधिक प्रत्यक्ष है। कारण यह कि और विधाएँ जहाँ किसी हद तक मात्र वस्तु-विश्लेषण को बर्दाश्त कर सकती हैं, कविता नहीं कर सकती, क्योंकि रस, सौन्दर्य या ‘कवित्व’ वह आधार है, जिससे उसका वजूद अलग नहीं हो सकता। आज हिन्दी में काव्यालोचन रचना के सौन्दर्य-निरूपण को रूपवाद मानता है और अपने को उसके सामाजिक सन्दर्भों या वैचारिक अभिप्राय तक सीमित रखने का आसान रास्ता चुन लेता है। समकालीन काव्यालोचन अपनी धुरी से ही खिसका हुआ नहीं है, वह रचना के पाठ से भी हटा हुआ है। इतना ही नहीं, वह कविता को सही ढंग से पहचानने वाले हिन्दी के साधारण पाठकों से भी कट चुका है। ऐसी स्थिति में उसका विचलन स्वाभाविक है। डॉ. नन्दकिशोर नवल हिन्दी के सुपरिचित आलोचक हैं जिनका कार्य क्षेत्र मुख्य रूप से कविता है। प्रस्तुत कृति ‘कविता : पहचान का संकट’ उनके कविता-सम्बन्धी लेखों का नया संग्रह है, जो हिन्दी काव्यालोचन को धुरी पर रखने और उसे रचना के पाठ तथा पाठक वर्ग से जोड़ने का एक सुन्दर प्रयास है। इसमें उन्होंने कबीर से लेकर बिलकुल हाल के कवियों तक की कविता को विषय बनाया है और उसमें निहित ‘कवित्व’ को संकेतित करते हुए उसके मूल्यांकन की चेष्टा की है। आशा है, हिन्दी कविता के समीक्षक पाठक और अध्येता को यह कृति आलोचना के क्षेत्र में नयी दिशा देगी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2012 |
Pulisher |
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