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Description
खबरों की जुगाली
ख़बरों की जुगाली विख्यात रचनाकार श्रीलाल शुक्ल के लेखन का नया आयाम है। यह न केवल व्यंग्य लेखन के नज़रिए से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि समाज में चतुर्दिक व्याप्त विद्रूपों के उद्घाटन की दृष्टि से भी बेमिसाल है। साठ के दशक में श्रीलाल शुक्ल ने अपनी कालजयी कृति राग दरबारी में जिस समाज के पतन को शब्दबद्ध किया था, वह आज गिरावट की अनेक अगली सीढ़ियाँ भी लुढ़क चुका है। उसकी इसी अवनति का आखेट करती हैं ख़बरों की जुगाली की रचनाएँ।
ये रचनाएँ वस्तुत: नागरिक के पक्ष से भारतीय लोकतंत्र के धब्बों, जख्मों, अन्तर्विरोधों और गड्ढों का आख्यान प्रस्तुत करती हैं। हमारे विकास के मॉडल, चुनाव, नौकरशाही, सांस्कृतिक क्षरण, विदेश नीति, आर्थिक नीति आदि अनेक ज़रूरी मुद्दों की व्यंग्य-विनोद से सम्पन्न भाषा में तल्ख़ और गम्भीर पड़ताल की है ख़बरों की जुगाली की रचनाओं ने। जुगाली को स्पष्ट करते हुए श्रीलाल शुक्ल बताते हैं–‘‘यह जुगाली बहुत हद तक लेखक पाठकों की ओर से, उनकी सम्भावित शंकाओं और प्रश्नों को देखते हुए कर रहा था। वे प्रश्न और शंकाएँ अभी भी हमारा पीछा कर रही हैं।’’ इस सन्दर्भ में ख़ास बात यह है कि उन प्रश्नों और शंकाओं के पनपने की वजह मौजूदा सामाजिक व्यवस्था का सतर्क, सचेत ढंग से पीछा कर रही है श्रीलाल शुक्ल की लेखनी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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