Khadan Se Khwabon Tak : Sangmarmar

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Khadan Se Khwabon Tak : Sangmarmar

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300.00 255.00

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Author: Prakash Biyani

Availability: Out of stock

Pages: 170

Year: 2009

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126717897

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

खदान से ख़्वाबों तक संगमरमर

पत्थर न केवल बोलते हैं, वरन् खूब मीठा बोलते हैं। यही नहीं, पत्थर मनुष्य से ज्यादा धैर्यवान व सहनशील हैं। पत्थरों का बाह्य आवरण जितना सख्त व निर्मम है, उनका अंतर्मन उतना ही कोमल व उदार है। बिलकुल श्रीफल की तरह। परिस्थितियों के साथ बदलने में तो पत्थरों का कोई सानी ही नहीं है। हाँ, वे जरूरत से ज्यादा स्वाभिमानी और स्वावलंबी है, अतः उन्हें सावधानी व मजबूती से भू-गर्भ से निकालना व संवारना पड़ता है। पत्थर आसानी से अपना रंगरूप नहीं बदलते, पर एक बार जो बदलाव स्वीकार कर लेते हैं, उसे स्थायी रूप से आत्मसात् कर लेते हैं। हम सबने देखा है कि पत्थर जब किसी भवन की नींव बनते हैं तो सहस्रों साल के लिए स्थितप्रज्ञ (समाधि में लीन) हो जाते हैं। पत्थर अत्यंत मजबूत व मेहनती हैं और दूसरों से भी ऐसी ही अपेक्षा करते हैं। याद करें, पाषाण युग।

10 हजार साल पहले मनुष्य पशुवत् जीवन जी रहा था। पत्थरों ने ही उसे सलीके से जीने व जिंदा रहने के लिए संघर्ष करना सिखाया। यही नहीं, पत्थर ही मनुष्य के पहले मित्र-परिजन व शुभचिंतक बने। पत्थरों ने मनुष्य को हथियार बनकर सुरक्षा प्रदान की। पत्थरों को मदद से श्किाार करके ही मनुष्य ने अपना पेट भरा। आभूषण बन पत्थरों ने मनुष्य को सजाया व संवारा। फर्श व छत बन उन्हें प्रकृति के प्रकोप से बचाया। पत्थरों ने ही मानव समुदाय को वैभव व कीर्ति प्रदान की है। वस्तुतः पत्थर ही वह नींव (बुनियाद) है, जिन पर कदमताल करते हुए मनुष्य सभ्य हुआ और आज आकाश में उड़ान भर रहा है। पत्थरों की धरती माँ की कोख में प्रसव पीड़ा से उनके हम तक पहुँचने की दिलचस्प कहानी है यह पुस्तक।

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Hardbound

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Publishing Year

2009

Pulisher

Language

Hindi

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