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Description
खुली खिड़कियां
देश आजादी की स्वर्ण जयंती मनाकर इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुका है, पर भारत नारी आज भी पितृसत्ता के किले में कैद पुरातन परंपराओं की कालकोठरी में घुट रही है। स्त्री को हजारों साल से गुलाम बनाए रखने वाली पितृसत्ता द्वारा उद्भूत हजारों साल से गुलाम बनाए रखने वाली पितृसत्ता द्वारा उद्भूत तथाकथित ‘महान संस्कृति’ के खिलाफ रणभेरी गुंजाती प्रस्तुत पुस्तक में हिंदी की सुप्रतिष्ठित कथाकार मैत्रेयी पुष्पा के गहन चिंतन को मुखर करते लेख संकलित हैं।
लेखिका ने इनमें बड़ी वेबाकी से औरत की गहन पीड़ा पर अपनी चिंता व्यक्त की है। साथ ही प्रगतिशील होने का नारा देकर भी उसी मानसिक दासता में जकड़ी आधुनिकाओं-फैशन परस्त तथा ‘सुंदर’ की प्रेमी ‘उच्चवर्णों’ की लेखिकाओं करवाचौथ का व्रत करने के लिए पुरुष के संकेत पर सदा की भांति अप्सरा की तरह सजने संवारने वाली राजनीतिक ‘बहनजियों’, मंत्रियों तथा अपने ‘सत्यवान’ की मृतसत्ता को जीवत रखने के लिए सतत साधनारत, अनपढ़ अनगढ़ कलयुगी सावित्री जैसी मुख्यमंत्रियों को भी नहीं बख्शा है।
‘मनुष्य की मूल रूप स्त्री’ को अपनी संपत्ति मानते हुए उसे पशु एवं दलित बनाए रखकर मनमानी भोगने वाले पुरुषों के साथ-साथ सुख सुविधा सत्ता भोगने की लालसा में भरसी श्रृंगार और विलास के मंच पर थिरकती औरत की मानसिकता को भी अपनी पैनी दृष्टि से भेदती उधेड़ती लेखिका निरंतर दलदल में फंसते समाज के समक्ष गंभीर चिंता की दिशा प्रस्तुत करती हैं, साथ ही प्रखर चेतावनियां भी जारी करती हैं ‘खुली खिड़कियां’ में !
सामयिक प्रकाशन वर्षों से नारी विमर्श की दिशा में गहन चिंतन से भरपूर उच्च कोटि का साहित्य प्रस्तुत करता आ रहा है। ‘खुली खिड़कियां’ उसी क्रम में अगला महत्त्वपूर्ण सोपान है। निश्चय ही यह पुस्तक भी पाठक वर्ग को भारतीय नारी के संदर्भ में सही दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करेगी।
यदि युवा पत्रकार और अपने खास तेवरों की लेखिका मनीषा का आग्रहपूर्ण स्वर मेरे आस पास न होता तो इस किताब का सृजन नहीं होता।
यह किताब रणभेरी गुंजाती ऐसी अस्मिताओं के नाम, जिन्होंने अपनी अंतश्चेतना के झरोखों से उन औरतों की तकलीफें देखी हैं, जो पितृसत्ता के किले में आज भी बंद हैं। कहने के लिए देश की आजादी की उर्द्धशतीमनाकर हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर गए हैं !
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher |
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