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Description
Description
प्रस्तुत पुस्तक में प्रदीप सौरभ के उपन्यास ‘तीसरी ताली’ में अभिव्यक्त किन्नर समाज के यथार्थ को दिखलाते हुए उनके प्रति समाज की संवेदनाओं को जाग्रत करने का प्रयास किया गया है। हाशिए से भी हाशिए पर जीवन जीने को विवश इन तबकों के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर कर इन्हें मुख्यधारा में शामिल करने की पैरवी करना इस पुस्तक का मुख्य ध्येय है। आज विमर्शों के इस दौर में जहाँ स्त्री, दलित, आदिवासी आदि केन्द्र में हैं तथा ये अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। वहीं इनसे भी दूभर ज़िन्दगी जीने को विवश किन्नर समाज को सामाजिक न्याय और अधिकारों की लड़ाई की माँग में यह उपन्यास मील का पत्थर साबित दिखाई पड़ता है।
मैंने इस पुस्तक के जरिए समाज से बहिष्कृत किन्नर समाज को मुख्यधारा के साथ जोड़ने का प्रयास करते हुए ‘तीसरी ताली’ उपन्यास का विवेचन और विश्लेषण किया है। मेरी जानकारी में इस उपन्यास पर अब तक न कोई स्वतन्त्र पुस्तक लिखी गयी है और न कोई शोधप्रबन्ध।
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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