Kinnar Vimarsh : Kal Aaj Aur Kal

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Kinnar Vimarsh : Kal Aaj Aur Kal

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495.00 395.00

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Author: Safalta 'Saroj'

Availability: 5 in stock

Pages: 208

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9789388260985

Language: Hindi

Publisher: Aman Prakashan

Description

किन्नर विमर्श : कल, आज और कल

लम्बे अर्से से साहित्य में विमर्शों का दौर चल रहा है। स्त्री-विमर्श, दलित-विमर्श, आदिवासी विमर्श। वर्तमान में किन्नर-विमर्श ने जोर पकड़ा है। ये चारों विमर्श अपनी अस्मिता अपने अस्तित्व, अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं, जिससे वे सदियों से वंचित थे। यह विमर्श स्वप्न, संघर्ष का चिंतन भी है और विषमता विभेद्‌, विकृतियों के खिलफ विद्रोह का बिगुल भी। स्वाभिमान से जीने की जिजीविषा संघर्ष करा रही हे। यह संघर्ष शब्दों तक न सिमटकर एक सामूहिक स्वर बनकर समाज में उभरा है जो स्वनिर्मित स्वर्णिम भविष्य लिखने को आतुर है।

शिक्षा, रोजगार, सम्मान, प्यार से वंचित किन्नरों का जीवन बहुत दुःखद है इसमें शक नहीं लेकिन इनमें बहुतेरे किन्नर ऐसे भी जिन्होंने अपनी विकलांगता पर विजय हासिल कर एक अच्छा मुकाम, अच्छी पहचान हासिल की। न जाने कितने किन्नर जिन्होंने बेचारी-लाचारी की जिन्दगी न जीकर खुद से एक लड़ाई लड़ी। अतीत की भयावह यादों को वर्तमान में हावी नहीं होने दिया। अपने वर्तमान और भविष्य को सँवारा, सुखी किया। अप्राकृतिक होने के दंश की मर्मान्तक पीड़ा को तो सहा लेकिन आगे बढ़कर समाज की घिनौनी, विकलांग सोच पर करारा तमाचा भी मारा। उन्होंने साबित किया वे ताली पीटने वाले मनोरंजक मात्र छक्का, मामू भर नहीं वे अनाज भी उपजा सकते हैं और वक्‍त आने पर बंदूक तलवार भी उठा सकते हैं।

कुछ समाज सेवी संगठन भी इस दिशा में आगे आये हैं। सरकार ने भी इस दिशा में पहल की। 10 साल की कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीमकोर्ट ने किन्नरों को एक नई पहचान दी। उन्हें थर्डजेंडर का दर्जा दिया उनको वो सारे हक दिए जो सामान्य नागरिक को दिये जाते हैं।

वक्‍त ने करवट ली है। जरूरत सोच बदलने की है। संकुचित सोच से बाहर निकलने की है। इसके लिए सबसे पहले परिवार को पहल करनी होगी। समानता, सम्मान, प्यार पर उनका समानाधिकार है वो देना होगा। यह समझना होगा कि हर इंसान की तरह उनके पास भी एक मासूम दिल है, जो धड़कता है।

किन्नरों को भी अनैतिकक कामों को छोड़कर-खुद को स्थापित करने के लिए अपनी छवि सुधारनी होगी। सम्मान से जीने के लिए अपनी कमजोरियों पर विजय पानी होगी। कुनबे को बढ़ाने से ज्यादा ध्यान अपनी मुक्ति के लिए देना होगा। क्‍योंकि मुक्ति, कोरी संवेदनाओं का खेल नहीं, संवेदना से समाधान नहीं होता। आवाज उठानी पड़ती है। परम्परागत छवियाँ तोड़नी पड़ती है। दकियानूसी और रुढ़ समाज की खोखली मान्यताओं के खिलाफ लड़ना पड़ता है। संघर्ष करना और संघर्ष की प्रेरणा देनी होती है। अगर तुम ये सब कर सकते हो तो यकीन जानो एक दिन दुनिया तुम्हारी होगी। भविष्य तुम्हें नहीं, तुम भविष्य को लिखोगे।

– सफलता सरोज

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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