- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
किताब के बहाने
आलोचना भी सृजनात्मक हो सकती है ? यह विश्वास इस पुस्तक के वे सारे लेख देते हैं, जो हिंदी, उर्दू, फ़ारसी, अरबी व अंग्रेज़ी पुस्तकों पर लिखे गए हैं। जिनके द्वारा ज़िंदगी के कुछ अहम मुद्दे और संवेदना का संसार हमारे सामने उजागर होता है। ‘अलिफ़ लैला’ और ‘हज़ार व यक दास्तान’ की क़िस्सागोई की तरह किताब के बहाने भी किसी एक बिंदु से अपनी बात उठा तर्क व तथ्य के सहारे एक लेखक को कई लेखकों, इलाक़ों, विचारधाराओं और यथार्थ की अनगिनत पगडंडियों से जोड़ती अपनी परिक्रमा पूरी कर पाठकों को सोच के उस धरातल पर ले जाकर खड़ा करती है, जो उनको मौलिकता प्रदान करती एक नई दृष्टि देती है। किसी एक किताब का फ़लक कितना विस्तृत हो सकता है, इसके उदाहरण ये लेख हैं, जो देशी और विदेशी लेखकों द्वारा सभ्यता, समाज, साहित्य, नारी-आत्मकथा जैसे विषयों पर लिखे गए हैं। ये लेख सात सौ वर्ष पहले लिखी पुस्तक से लेकर बीसवीं सदी के अंतिम वर्षों तक लिखी कृतियों से हमारा परिचय कराते हैं।
लेखिका का अपना विश्वास है ‘‘किताबों के अलावा मेरा कोई ख़ुदा नहीं है।’’
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.