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Description
कोहरे में कैद रंग
कोहरे में कैद रंग – जीवन के विविध रंग। रंग ही रंग, हर व्यक्ति का अपना अलग रंग जिसे लिये हुए वह संसार में आता है। अक्सर वह रंग दिखता नहीं, क्योंकि असमय ही कोहरे से घिर जाता है। कुछ होते हैं जो उस रंग को अपनी जीवन शैली में गुम्फित कर लेते हैं। काश उन रंगों पर कोहरे की चादर न होती। तरह-तरह के रंगों से सजी जीवन की चादर हमारे सामने फैलाता है यह उपन्यास। विषम परिस्थितियों में भी गरिमा से जीते लोग, अपना-अपना जीवनधर्म निबाहते हुए…इस तरह अपनी और पाठकों की जीवन के प्रति आस्था को और दृढ़ करते हुए…
अपने पूर्व उपन्यास “फूल… इमारतें और बन्दर’ में जहाँ गोविन्द मिश्र की दृष्टि समय-विशेष के यथार्थ अधिक थी, ‘कोहरे में कैद रंग’ तक आकर वह जैसे पूरे जीवन के यथार्थ को उठाती दिखती है… यथार्थ-आदर्श, वाह्य-आन्तरिक जैसे तमाम द्वन्दों से बचती हुई। जीवन…सिर्फ जीवन जिसका रंग पानी जैसा है, काल-सीमाओं के पार करीब-करीब सा बहता हुआ…
फिर भी पुराने, नये और नये-से-नये पात्रों के जीवन-दर्शन द्वारा यहाँ पानी के रंग में विशिष्ट रंग उतराते दिखते रंग उतराते दिखते हैं। उपन्यास के भीतर ही लिखे जा रहे इस उपन्यास की विवेचना होती चलती है जिससे जीवन कभी उपन्यास में, उपन्यास कभी जीवन के बहता दिखता है…आर-पार।
इस विशिष्ट उपन्यास जिसे 2008 में साहित्य अकादेमी (केन्द्रीय) पुरस्कार मिला उसके अनुवाद कई भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत है उसका नया संस्करण।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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