- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
इतनी भयानक दूट-फूट में से, इतनी नकारा, बेकार, बेवकूफ़ और डरी-सहमी औरत में से कैसे और कब एक निडर, बेखौफ, अपने जीवन के सभी फैसले खुद लेने की हिम्मत और हौसला करने वाली औरत पैदा हो गई, इसी ट्रांसफॉर्मेशन यानी काया-कल्प की दास्तान सुनाना चाहती हूँ आप सबको।
औरत, जिसे हमेशा कूड़ा-कबाड़ा समझा जाता है।
औरत, जो खुद भी अपने आपको कूड़ा-कबाड़ा समझती रहती है उम्र-भर। क्योंकि यही समझकर ही तो जीवन से, जीवन की तमाम कड़वाहटों से समझौता किया जा सकता है कि सहना, समझौता करना और अपना अस्तित्व मिटा देना, किसी भी तकलीफ की शिकायत जुबान पर नहीं लाना ही औरत का आदर्श मॉडल समझा जाता है। हर औरत को इसी आदर्श की घुट्टी दी जाती है। समाज में औरत का स्वीकृत मॉडल यही है कि वह निगाह नीची रखे, हर जुल्म को चुपचाप सहे, खामोश रहे बेटे पैदा कर ससुराल के खानदान का नाम जीवित रखे और वंश-परंपरा को आगे चलाए। पति के हर आदेश का पालन करे।
औरत, जिसे पहले माता-पिता के घर से ‘पराई अमानत’ समझकर पाला-पोसा जाता है। औरत, जो विवाह के बाद पति के घर की और ससुराल की ‘धरोहर’ यानी जायदाद होती है। औरत, जिसे उसका पिता दानस्वरूप एक अजनबी पुरुष के हाथों में सौंप देता है कि ले जा, आज से यह गाय तेरी है। इसका दूध निकालो, बछड़े पैदा करवाओ, मारो-पीटो, चाहे चमड़ी उधेड़ दो इसकी।
जा, ले जा, पाल-पोसकर तुझे दान में दी अपनी बेटी हमने। आज से इसके लिए यह घर पराया है। आज से तेरा घर ही इसके सिर छुपाने की जगह है।
जा बेटी, जा अपने घर। आज से ये घर तेरे लिए पराया हुआ। चावलों की मुट्ठी भरकर सिर के ऊपर से पीछे फेंक। मखानों की मुट्ठी भरकर पीछे फेंक। तेरे भाई सुखी रहें, और सुखी बसे उनका घर-परिवार। भाइयों का घर हरा-भरा रहे। दूध-पूत से भरा रहे।
औरत, जिसके लिए पिता का घर हमेशा पराया रहता है, और विवाह के बाद पति का घर भी अपना नहीं होता।
‘बेटी, घर जा अपने…’
अपने घर।
कौन-सा घर उसका अपना होता है ?
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
Reviews
There are no reviews yet.