Krantikari Kosh (Set of 5 Vols.)
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क्रान्तिकारी कोश भाग 1-5
यह ग्रंथ समर्पित है उन सभी क्रांतिवीरों को, जिन्होंने मातृभूमि को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करने हेतु अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया तथा उन भूले-बिसरे क्रांतिवीरों को, जिन्हें इस ग्रंथ में सम्मिलित नहीं किया जा सका।
भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन
भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है। भारत की धरती के प्रति जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने की जो भावना उस समय थी, आज उसका नितांत अभाव हो गया है।
क्रांतिकारी आंदोलन का समय सामान्यतः लोगों ने सन् 1857 से 1942 तक माना है। मेरा विनम्र मत है कि इसका समय सन् 1757 अर्थात् प्लासी के युद्ध से सन् 1961 अर्थात् गोवा मुक्ति तक मानना चाहिए। सन् 1961 में गोवा मुक्ति के साथ ही भारतवर्ष पूर्ण रूप से स्वाधीन हो सका है।
जिस प्रकार एक विशाल नदी अपने उद्गम स्थान से निकलकर अपने गंतव्य अर्थात् सागर मिलन तक अबाध रूप से बहती जाती है और बीच-बीच में उसमें अन्य छोटी-छोटी धाराएँ भी मिलती रहती हैं, उसी प्रकार हमारी मुक्ति गंगा का प्रवाह भी सन् 1757 से सन् 1961 तक अजस्र रहा है और उसमें मुक्ति यत्न की अन्य धाराएँ भी मिलती रही हैं।
सशस्त्र क्रांति की विशेषता यह रही है कि क्रांतिकारियों के मुक्ति प्रयास कभी शिथिल नहीं हुए। अपनी प्रमुख विशेषताओं और प्रवृत्तियों के कारण हम पूरे क्रांतिकारी आंदोलन का काल-विभाजन तथा उसका नामकरण भी कर सकते हैं।
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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