Kuch Khojte Hue

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Kuch Khojte Hue

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1,495.00 1,155.00

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Author: Ashok Vajpeyi

Availability: 5 in stock

Pages: 730

Year: 2012

Binding: Hardbound

ISBN: 9789350722046

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

कुछ खोजते हुए

यह कहना या ठीक-ठीक बता पाना कठिन है कि इस जिन्दगी भर से चली आ रही खोज का लक्ष्य क्या है ? बिना लक्ष्य के या किसी प्राप्ति की आशा के खोज क्यों नहीं की जा सकती ? अगर यह सम्भव है, भले कुछ अतर्कित है तो इन पृष्ठों में जो कुछ खोजा जाता रहा है इसका कुछ औचित्य बनता है। खोजने की प्रक्रिया में कुछ सच, कुछ सपने, कुछ रहस्य, कुछ जिज्ञासाएँ, कुछ उम्मीदें, कुछ विफलताएँ सब गुँथे हुए-से हैं। शायद कोई भी लेखक कुछ पाने के लिए नहीं खोजता: कई बार अकस्मात् अप्रत्याशित रूप से उसके हाथ कुछ लग जाता है। कई बार वह कुछ, इससे पहले कि लेखक को इसका सजग बोध हो या कि वह उसे विन्यस्त कर पाये वह फिसल भी जाता है और कई बार ऐसे ग़ायब हो जाता है कि दुबारा फिर खोजे नहीं मिलता। एक साप्ताहिक स्तम्भ के बहाने अपनी ऐसी ही बेढब खोज को दर्ज़ करता रहा हूँ। इसमें संस्मरण, यात्रा-वृत्तान्त, पुस्तक और कला समीक्षा, इधर-उधर हुए संवाद और मिल गये व्यक्तियों से बातचीत आदि सभी संक्षेप में शामिल हैं।

मुझ जैसे बातूनी व्यक्ति को, ‘जनसत्ता’ में पिछले तेरह वर्षों से, बिला नागा, अबाध रूप से ‘कभी कभार’ स्तम्भ लिखते हुए यह अहसास हुआ कि संक्षेप लेखन का बेहद वांछनीय पक्ष है। जो संक्षेप में कुछ पते की बात नहीं कर सकता वह विस्तार में ऐसा कर पायेगा इसमें अब कुछ सन्देह होने लगा है। ऐसे पाठक या हितैषी मिलते हैं जिनकी शिकायत कई बार यह होती है कि विस्तार से लिखना चाहिए था। यह उन ‘चाहियों’ में से एक है जो मुझसे नहीं सधे। जैसे लिखना तो मुझे था डायरी, जो अब जब-जैसी याद आती है इसी स्तम्भ में लिख देता हूँ: डायरी नहीं लिख पाया।

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Authors

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Hardbound

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2012

Pulisher

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