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Description
कुइयाँजान
बताशेवाली गली में सुबह फूट चुकी थी, मगर उसका उजाला तंग गली में अपना दूधिया रंग अभी बिखेर नहीं पाया था। मंदिर की घंटी और दूध वाले की साइकिल की टनटनाहट से एक-दूसरे से सटे घर कुनमुना उठे। चंदन हलवाई दातून करता घर के बाहर बने पतले चबूतरे पर आकर बैठ गया। कुत्तों ने भी अंगड़ाई ले बदन सीधा किया और उसे देखकर अपनी दुम हिलानी शुरू कर दी, मगर चंदन उनसे बेगाना बना दातून चबाता रहा। उसकी आंखों से नींद का खुमार अभी उतरा नहीं था। कल रात शादी की पार्टी से लौटते-लौटते दो बज गए थे। एकाएक मद्धिम सुरों से रेंगती छमछम की आवाज चंदन की चेतना से टकराई। इतनी सुबह किसकी विदाई हो रही है ? जब पायजनी का स्वर निरंतर पास आता चला गया तो उसने अपनी मिचमिचाई आंखें खोली और एकदम से झुंझला उठा।
‘‘सत्यानाश ! रंगीले, रसीले की जोड़ी कहां से आय मरी है। सारे दिन का अब भगवान ही मालिक है।’’
कुत्तों ने दौड़कर रंगीले, रसीले को घेरा और उन्हें सूंघने लगे। रसीले ने हाथ में पकड़ी ढोलक पर थाप मारी। कुत्तों ने पीछे हटकर उन दोनों को घूरा, फिर अपना एतराज दर्ज कराते भौंक उठे।
‘‘कहां जात हो रसीले, इतनी सुबह सुबह ?’’ भड़भूजन जो लोटा भर-भरकर सिर पर डाल रही थी, एकाएक हाथ रोक पूछ बैठी।
‘‘बनत तो ऐसे हो चाची, जैसे तोका खबर नहीं।’’ रंगीले ने बदन को झटका देते हुए जोर से ताली बजा, ठुमका लगाया।
‘‘अरे पन्नवा के घर कल रात बेटवा भवा है न !’’ पनवाड़िन अपने पोते का मुंह धुलाते हुए बोली।
‘‘बूढ़े मुंह मुहांसा !’’ भड़भूजन कह हँस पड़ी।
झुंझलाया चंदन कुल्ली कर, मुह पर छीटें डाल दूकान के तखते पर सोए पड़े लड़के को आवाज देने लगा। हलवाइन ने अंदर से आकर चाय का लोटा थमाया और दुकान जा, शीशे के केस से मोतीचूर के चार-पांच लड्डू उठा अंदर घर में चली गई।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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