- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
लहरों का आरव
लहरों का आरव प्रसिद्ध तमिळ लेखक रा. कृष्णमूर्ति ‘कल्कि’ द्वारा लिखित और साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत उपन्यास अलैयोशै का हिंदी अनुवाद है। उपन्यास में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 1930 से 1947 तक की अठारह वर्ष की कहानी को विभिन्न पात्रों के ज़रिए उभारा गया है। यह वह समय था, जब भारत की धरती पर कई बड़ी घटनाएँ एक साथ घट रही थीं। एक तरफ़ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी अपनी अहिंसा की शक्ति के दम-पर करोड़ों भारतीयों के मन पर राज कर रहे थे तो ख़ुद यहाँ की जनता भी परिवर्तन के लिए कई क्रांतिकारी क़दम उठा रही थी। देश की स्वतंत्रता के लिए हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुरूप कोई-न-कोई क़दम उठा रहा था। इन छोटे-बड़े प्रयासों की गूँज इस उपन्यास में आप सर्वत्र महसूस कर सकते हैं। लेखक स्वतंत्रता की इस लड़ाई के दुखद परिणाम की जड़ में जाने के लिए दिल्ली, पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, आदि स्थानों की यात्रा कर वहाँ आए पंजाबी शरणार्थियों को देखा। तब उनके मन में कई प्रश्न उठे ? ऐसी मुसीबतें आती ही क्यों हैं और दुर्शक्तियों के कारगर होने के क्या कारण हैं ? क्यों कुछ लोग हमेशा सुख की गोद में सोते हैं और कुछ सुख को परिभाषा जाने बिना ही दुख में जीते चले जाते हैं। और इस दुनिया से कूच भी कर जाते हैं। ये पक्षपात क्यों ? यह भयंकर यातना क्यों ?
ललिता, सीता, धारिणी, सूर्या, सौंदरराघवन और पट्टाभिरामन की आपसी बातचीत और अपने-अपने अंतरंग के विचलन और उद्देलन को बाँटते हुए लेखक ने इस उपन्यास की रचना की है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.