Lal Haveli

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Lal Haveli

Lal Haveli

150.00 128.00

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150.00 128.00

Author: Shivani

Availability: 5 in stock

Pages: 298

Year: 2016

Binding: Paperback

ISBN: 9788183611176

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

लाल हवेली

ताहिरा ने पास के बर्थ पर सोये अपने पति को देखा और एक लम्बी साँस खींचकर करवट बदल दी। कम्बल से ढँकी रहमान अली की ऊँची तोंद गाड़ी के झकोलों से रह-रहकर काँप रही थी। अभी तीने घंटे और थे। ताहिरा ने अपनी नाजुक कलाई में बँधी हीरे की जगमगाती घड़ी को कोसा, कम्बख्त कितनी देर-देर में घंटी बजा रही थी। रात-भर एक आँख भी नहीं लगी थी उसकी। पास के बर्थ में उसका पति और नीचे के बर्थ में उसकी बेटी सलमा, दोनों नींद में बेखबर बेहोश पड़े थे। ताहिरा घबराकर बैठ गई। क्यों आ गई थी वह पति के कहने में, सौ बहाने बना सकती थी ! जो घाव समय और विस्मृति ने पूर दिया था, उसी पर उसने स्वयं ही नश्तर रख दिया, अब भुगतने के सिवा और चारा ही क्‍या था ?

स्टेशन आ ही गया। ताहिरा ने काला रेशमी बुर्का खींच लिया। दामी सूटकेस, नये बिस्तरबन्द, एयर बैग, चाँदी की सुराही उतरवाकर रहमान अली ने हाथ पकड़कर ताहिरा को ऐसे सँभालकर अन्दाज़ से उतारा जैसे वह काँच की गुड़िया हो, तनिक-सा धक्का लगने पर टूटकर बिखर जाएगी। सलमा पहले ही कूदकर उतर चुकी थी। दूर से भागते, हॉँफते हाथ में काली टोपी पहने एक नाटे-से आदमी ने लपककर रहमान अली को गले से लगाया और गोद में लेकर हवा में उठा दिया। उन दोनों की आँखों से आँसू बह रहे थे।

“तो यही मामू बित्ते हैं” ताहिरा ने मन-ही-मन सोचा और थे भी बित्ते ही भर के। बिटिया को देखकर मामू ने झट गले से लगा लिया, “बिल्कुल इस्मत है, रहमान।” वे सलमा का माथा चूम-चूमकर कहे जा रहे थे, “वही चेहरा-मोहरा, वही नैन-नक्श। इस्मत नहीं रही तो खुदा ने दूसरी इस्मत भेज दी।’’

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2016

Pulisher

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