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Description
लालगढ़ की माँ
उपन्यास… फिर भी सच्ची कहानी वह महिला दरिद्रता-सीमा के नीचे आती थी, इसलिए वह ‘विमेन्स लिब’ का मतलब नहीं समझती थी। बेटा सरकारी दफ़्तर में नौकरी करता था, मुहल्ले के अन्य दस लड़कों की तरह, ग़ैर-ज़िम्मेदार नहीं था। इसके बावजूद वह यह समझती थी कि लड़कियों का स्कूल जाना ज़रूरी है, घर के कोने में पड़ी न रहकर, हाथ का कामकाज, सिलाई-पुराई, हस्तशिल्प सीखना ज़रूरी है। लेकिन, ‘लालगढ़’ शब्द सुनकर, उसके मन में विपन्न विस्मय छलक उठा था, जिसे सुनकर वह अपनी सुख-चैन की गृहस्थी छोड़कर, ख़ुद अपनी ही तलाश में, बाहर की दुनिया में निकल पड़ती है… ‘अरण्य का अधिकार’, ‘हजार चौरासीवें की माँ’, ‘चेट्रिट मुंडा’ की लेखिका, महाश्वेता देवी की कलम से एक और विस्फोट।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2010 |
Pulisher |
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