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ललित निबन्ध : स्वरूप एवं परम्परा
डॉ. श्रीराम परिहार हिन्दी की नई पीढ़ी के प्रख्यात ललित निबन्धकार ही नहीं अपितु एक सशक्त आलोचक भी हैं, जिनके लेखन में पाठकों को मोहित करने की अद्भुत क्षमता है। ललित निबन्ध साहित्य में हजारीप्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए समकालीन ललित निबन्ध साहित्य की समद्धि में डॉ. परिहार अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं।
‘ललित निबन्ध : स्वरूप एवं परम्परा’ पुस्तक में लेखक डॉ. श्रीराम परिहार की संवेदनशील दृष्टि एवं शोधपरक चिन्तन का समन्वय गोचर होता है। लेखक ने ललित निबन्ध के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए उसे एक शास्त्र के रूप में देखा है और हिन्दी के आदि या प्रथम ललित निबन्धकार की खोज की है। गद्य के अन्तर्गत निबन्ध की भाषा-शैली एकदम अलग और विशिष्ट होती है, अतः प्रस्तुत पुस्तक में रचनाकार की यह शैली देखने को मिलती है। इसमें लेखक डॉ. श्रीराम परिहार ने अपने हृदय को फिर से परखकर, अन्य ड्डतिकार के भीतर प्रवेश कर उनके व्यक्तित्व को अपनी भाषा-शैली के रेखाचित्रों से बाँधा है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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