Likhti Hoon Man

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Likhti Hoon Man

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Author: Rohini Agarwal

Availability: 5 in stock

Pages: 136

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9788119014590

Language: Hindi

Publisher: Bhartiya Jnanpith

Description

लिखती हूँ मन

प्रखर आलोचक कथाकार रोहिणी अग्रवाल का पहला काव्य संग्रह है। पहला, पर अनपेक्षित नहीं। उनके समूचे गद्य लेखन में जिस सघनता के साथ कविता की लय अन्तर्गुफित रहती है, उससे अनुमान लगाना कठिन नहीं कि अपने व्यक्तित्व की बुनियाद में मूलतः वे कवयित्री हैं। आप संग्रह की कविताएँ पढ़ते जायें, पायेंगे कि मर्म को छू लेने वाली संवेदना के बीच विचारगझिन बौद्धिक तेवर ऐसे बिंधे हैं जैसे रस से सरावोर पत्ते के दोने में अपनी ही तड़प से जलती आग । जीवन के तमाम रंग इन कविताओं में दबे पाँव चले आये हैं-कहीं हूक बन कर कहीं कूक बन कर कहीं सवाल उकेरते हुए, कहीं वक्त की अनसुनी पुकारों को टेरते हुए; कहीं प्रेम का राग वन कर, कहीं पाखण्ड और वर्चस्व के विरुद्ध तन कर । स्त्री का तलघर जीवन्त हो उठा है इन कविताओं में। ऐसा तलघर जो सीलन, बदबू और बिलबिलाते कीड़ों को शर्म की तरह दाब-ढाँक कर नासूर नहीं बनाता, बल्कि अपने अन्तर्विरोधों, धड़कनों और दुर्बलताओं की आँख में आँख डाल निरन्तर माँजता चलता है स्वयं को कि बुलन्द हौसलों के साथ आकाश के अंचल में उसे पतंग की तरह टाँक दे।

ऑब्जर्वेशन और स्वतःस्फूर्तता इन कविताओं को तीसरी आँख देती ताक़त है, तो दर्द एवं तिरस्कार में लिथड़ी बेचारगी को स्त्री अस्मिता की शिनाख्त तक ले जाती निस्संग वैचारिकता मूलाधार। इसलिए यहाँ कहीं प्रेम की बेखबरी में ‘मगन मन बालू के घरीदे’ बनाने का जुनून है तो कहीं दीवार में ज़िन्दा चुन दी गयी ‘देवियों’ को मौत के सन्त्रास से मुक्त कराने की प्रतिवद्धता; कहीं सात द्वार, सात जन्म, सात वचन’ कविता में युगों से प्रबंचिता रही स्त्री के आत्मज्ञान का आलोक है, तो कहीं ‘मेरे साथ नसीहत नहीं, सपने चलते हैं का उद्घोष करती एक नवी चेतना है। इन कविताओं में ‘अदृश्य कर दी गयी स्त्रियों की वेदना है, लेकिन वेदना अन्तिम टेक बन कर आँसुओं में नहीं घुलती, विवेक की मशाल बनकर वक़्त की पुनर्रचना का बीड़ा उठाती है।

रोहिणी अग्रवाल को पढ़ना समय स्थितियों और सम्बन्धों की भीतरी तहों तक उतरना है। लिखती हूँ मन की इन कविताओं में कवयित्री समय के राजनीतिक-सांस्कृतिक सरोकारों के साथ गहरे सम्पृक्त नज़र आती हैं। ‘सफ़र के बीच टोटम पोल’, ‘कुलधरा’ और ‘बभ्रुवाहन’ जैसी कविताओं में दिकू-काल को संश्लिष्ट-जटिल करती अन्तर्लीन धाराओं की शिनाख्त करने के बाद ‘जल है पर जल नहीं’ कविता में वे जिस बड़े फलक पर संस्कृति, राजनीति, पूँजी और धर्म की भित्ति पर टिकी वर्चस्ववादी ताकतों को बेनकाब करते हुए ग्लोबल समय, साहित्य, दर्शन एवं शास्त्रों के बीच आवाजाही करती हैं, वह सराहनीय है। लम्बी कविता को साध पाना अपने आप में बड़ी चुनौती है। अनेक प्रतीकों, बिम्बों और सन्दर्भों की संरचना कर रोहिणी अग्रवाल न केवल इसे ‘सभ्यता-समीक्षा की विचार- कविता का रूप देती हैं, बल्कि आद्यन्त कविता की आन्तरिक लय को भी बनाये रखती हैं।

बेशक नये की बाँकपन का तरेर’ हैं लिखती हूँ मन की तमाम कविताएँ। इन कविताओं से गुज़रना हवा की सरसराहट में ग्रंथी सुवास से महकना भी है, और हवा में रुथे विचार-कणों में भीतर की तड़प गूंथ कर आग का रूप देना भी है।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

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