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लोहित के मानसपुत्र : शंकरदेव
असमिया संस्कृति को सँवारने व उसे पराकाष्ठा पर ले जाने में श्रीमंत शंकरदेव की सबसे बड़ी भूमिका रही है। वे मात्र वैष्णव संत ही नहीं, अपितु गीत संगीत, गायन, वादन, नृत्य, नाटक, अभिनय, चित्रकारी, वयन आदि विभिन्न ललित कलाओं के अनुपम शिल्पी भी थे। उन्होंने पाखंड, कर्मकांड, अंधविश्वास, जातिभेद, बलिप्रथा और वामाचार में खोये असमवासियों में धर्म की वास्तविक शुचिता, सहजता, करुणा आदि मानवीय गुणों से नवचेतना विकसित करने का क्रांतिकारी कार्य किया। श्री शंकरदेव द्वारा असमिया समाज में की गई सामाजिक क्रांति के लिए उन्हें कई बार सामाजिक एवं राजकीय प्रताड़नाएँ भी सहनी पड़ीं। फिर भी वे जीवन के अंतिम क्षण तक लोककल्याण और रचनाकार्य में रत रहे। हिंदी भाषा में श्रीमंत शंकरदेव के विषय में विशेष लिखा न होने के कारण वे असमिया इतरभाषी समाज में अपेक्षाकृत कम ज्ञात हैं। इस महापुरुष पर हिंदी में विस्तृत पुस्तक उपलब्ध नहीं होने के कारण कबीरदास, नानकदेव, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु की तरह इनकी अखिल भारतीय प्रसिद्धि नहीं हो सकी हिंदी जगत में श्रीमंत शंकरदेव को परिचित कराने में उपन्यासोसम रोचक विस्तृत सूचनाओं से समृद्ध यह ग्रंथ महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने में पूर्णतः सक्षम है।
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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