Lok Aur Shastra : Anwaya Aur Samanwaya
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लोक और शास्त्र : अन्वय और समन्वय
प्रत्येक समाज में स्तर भेद होते हैं और वैचारिक अभिव्यक्ति रूपों की बहुलता होती है। इस प्रकार की विवधता संस्कृति को स्मृध्द करती है। जैवविविधता की ही तरह वैचारिक तथा ज्ञान परंपराओं की विविधता भी हमें सम्पन्न बनती है।
पुस्तक में शामिल आलेखों का प्रतिपाद वैसे केंद्रीय विषय के भिन्न-भिन्न आयामों को स्पर्श करता है। इनमें चर्चित विषय है लोक और शस्त्र के स्वरूप और उनकी व्याप्ति, उनके संबंध-परस्पर, एक-दूसरे में उनकी स्टीठी और गति: साहित्य और काला के अलग-अलग संदर्भों में, अलग-अलग रूपों में उनकी अभिव्यक्ति के साथ ही भोजपुरी,ब्रज,मैथिली मराठी, आदि भाषाओं के संदर्भ में उनके वैशिष्ट्य के अलावा उनमे निहित स्त्री और पर्यावरण संबंधी चिंता और चेतना है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
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