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Maa

Maa

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Author: Munavvar Rana

Availability: 5 in stock

Pages: 94

Year: 2014

Binding: Paperback

ISBN: 9788181437136

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

माँ

अपनी बात

ग़ज़ल पर मुद्दतों तरह-तरह के इल्ज़ाम लगते रहे। बेश्तर आलोचकों ने इस विधा को REJECT किया। इसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि ग़ज़ल कुछ खास मौजूआत की अमरबेल में मुद्दतों जकड़ी रही। इसके बावजूद हज़ारों ऐसे शेर कहे गए जिन्होंने ग़ज़ल के कैनवस को बड़ा किया। हालाँकि ग़ज़ल पर लगे इस इल्ज़ाम की असली वजह ये थी कि बहुत कम शब्दों में अपनी बात ग़ज़ल के माध्यम से ही कही जा सकती थी, फिर उस ज़माने में आम तौर से ग़ज़ल दरबारों में लिखी जाती थी और वहीं सुनी भी जाती थी। इसलिए दरबारी आदाब को नज़र में रखना पड़ता था।

लिहाज़ा शायर हमेशा मयखानों से निकलता हुआ और कोठों से उतरता हुआ दिखायी देता था। इस हक़ीक़त से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि उस वक़्त के राजे-महाराजे शायरों की परवरिश और नाज़-बरदारी भी करते थे, लेकिन गुज़रते वक़्त के साथ-साथ ग़ज़ल के शैदाई आम लोग भी होने लगे। और हर ज़माने में जो चीज़ भी अवाम की पसंदीदा हो जाती है, उसका दाख़िला दरबारों में बंद हो जाता है। शायद यही सबब है कि ग़ज़ल जैसे ही गली के मोड़, शहर के चौराहों, कस्बात के चबूतरों और खेत-खलिहानों में भी मौजूआत की तलाश में भटकने लगी तो इसने नए-नए मंजरनामे भी तलाश कर लिए शब्दकोशों के मुताबिक ग़ज़ल का मतलब महबूब से बातें करना है। अगर इसे सच मान लिया जाए तो फिर महबूब ‘माँ’ क्यों नहीं हो सकती ! मेरी शायरी पर मुद्दतों, बल्कि अब तक ज्यादा पढ़े-लिखे लोग EMOTIONAL BLACKMALING का इल्ज़ाम लगाते रहे हैं। अगर इस इल्ज़ाम को सही मान लिया जाए तो फिर महबूब के हुस्न, उसके जिस्म, उसके शबाब, उसके रुख व रुख़सार, उसे होंठ, उसके जोबन और उसकी कमर की पैमाइश को अय्याशी क्यों नहीं कहा जाता है !

अगर मेरे शेर EMOTIONAL BLACKMALING हैं तो श्रवण कुमार की फरमां-बरदारी को ये नाम क्यों नहीं दिया गया! जन्नत माँ के पैरों के नीचे है, इसे गलत क्यों नहीं कहा गया ! मैं पूरी ईमानदारी से इस बात का तहरीरी इकरार करता हूँ कि मैं दुनिया के सबसे मुक़द्दस और अज़ीम रिश्ते का प्रचार सिर्फ़ इसलिए करता हूँ कि अगर मेरे शेर पढ़कर कोई भी बेटा माँ की ख़िदमत और ख़याल करने लगे, रिश्तों का एहतेराम करने लगे तो शायद इसके बदले में मेरे कुछ गुनाहों का बोझ हल्का हो जाए।

ये किताब भी आपकी ख़िदमत तक सिर्फ़ इसलिए पहुँचाना चाहता हूँ कि आप मेरी इस छोटी-सी कोशिश के गवाह बन सकें और मुझे भी अपनी दुआओं में शामिल करते रहें।

ज़रा-सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये,

दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है।

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Paperback

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Publishing Year

2014

Pulisher

Language

Hindi

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