Machhuare

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Author: Shivshankar Pillai

Availability: 2 in stock

Pages: 167

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788126026098

Language: Hindi

Publisher: Sahitya Academy

Description

मछुआरे

इनके सर्वोत्तम उपन्यास तीन हैं, जिनमें से एक ‘तोट्टियुडे-मग़न’ है। इसका हिन्दी में ‘चुनौती’ शीर्षक के अनुवाद हुआ है। दूसरा ‘रंटि टंगषी’ (दो सेर धान) है, जिसका साहित्य अकादेमी की ओर से कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। तीसरा महत्त्वपूर्ण उपन्यास यह ‘चेम्मीन’ (मछुआरे) है, जिसमें केरल के तटवर्ती प्रदेश के मधुआरों के जीवन का चित्रण  मिलता है। यह एक सरल रोमांस की कहानी है, जिसका ताना-बाना उस अंध-विश्वास के इर्द-गिर्द बुना गया है, जो मधुआरों के दैनंदिन कार्य-कलापों को प्रभावित करता है। इन सबका अत्यन्त यथार्थवादी ढंग से चित्रण किया गया है। इस उपन्यास पर साहित्य अकादमी ने लेखक को सन् 1957 में पाँच हजार रुपये का पुरस्कार भी प्रदान किया है। इसके अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो रहे हैं।

 

खण्ड एक

1

‘‘बप्पा नाव और जाल खरीदने जा रहे हैं।’’

‘‘तुम्हारा भाग्य।’’

करुत्तम्मा से कोई जवान देते नहीं बना। लेकिन उसने तुरन्त परिस्थिति पर काबू पा लिया। उसने कहा, ‘‘रुपये काफी नहीं है। क्या उधार दे सकते हो ?’’

हाथ खोलकर दिखाते हुए परी ने कहा, ‘‘मेरे पास रुपये कहा हैं ?’’

कुरुत्तम्मा हँस पड़ी और कहा, ‘‘तब अपने को छोटा मोतीलाली कहते क्यों फिरते हो ?’’

‘‘तुम मुझे छोटा मोतीलाल क्यों कहती हो ?’’

‘‘नहीं तो क्या कहकर पुकारू ?’’

‘‘सीधे परीकुट्टी कहकर पुकारा करो !’’

करुत्तम्मा ने ‘परी’ तक कहा और खिलखिलाकर हँस पड़ी। परी ने पूरा नाम कहने का अनुरोध किया। करुत्तम्मा ने हँसी को रोका और गम्भीर भाव से असहमति प्रकट करने के लिए सिर हिला दिया। उसने कहा, ‘‘ऊँ हूँ, मैं नाम लेकर नहीं पुकारूँगी।’’

‘‘तो मैं भी करुत्तम्मा कहकर नहीं पुकारूँगा ?’’

‘‘तो फिर क्या कहकर पुकारोगे ?’’

‘‘मैं तुम्हें बड़ी मल्लाहिन कहकर पुकारूँगा।’’

करुत्तम्मा हँस पड़ी। परीकुट्टी ने भी ठहाका मारा, खूब हँसा। क्यों ? दोनों इस तरह क्यों हँसे ? कौन जाने ! दोनों मानो दिल खोलकर हँसे।

‘‘अच्छा,  नाव और जाल खरीदने के बाद नाव में जो मछली आयगी उसे व्यापार के लिए मुझे देने को अपने बप्पा से कहोगी ?’’

‘‘अच्छा दाम दोगे तो मछाली क्यों न मिलेगी ?’’  फिर जोरों से हँसी हुई। भला इससे इतना हँसने की क्या बात थी। कोई मज़ाक था ! कोई भी बात हो, आदमी इस तरह कहीं हँसता है ! हँसते-हँसते करुत्तम्मा की आँखें भर आई थीं। हँसते-हँसते उसने कहा, ‘‘ओह मुझे इस तरह न हँसाओ, मोतलाली !’’

‘‘मुझे भी न हँसाओ, बड़ी मल्लाहिन जी’’ –परीकुट्टी ने कहा।

‘‘बाप रे कैसा आदमी है यह छोटा मोतलाली !’’

दोनों फिर ऐसे हँसे पड़े मानों एक दूसरे को गुदगुदा दिया हो। हँसी  भी  कैसी चीज़ है ! आदमी को कभी गम्भीर बना देती है, तो कभी रुलाकर छोड़ती है। करुत्तम्मा का चेहरा लाल हो गया था। इसने शिकायत के तौर पर नहीं, गुस्से में कहा, ‘‘मेरी तरफ इस तरह मत ताको !’’ उसकी हँसी खत्म हो चुकी थी। भाव बदल गया था। ऐसा लगा, मानो परीकुट्टी ने अनजाने में कोई गलती कर दी हो।’’

‘‘करुत्तम्मा के मुँह से मिकला। वह अपनी छाती को हाथों से ढकती हुई घूमकर खड़ी हो गई। वह एकाएक सकुचा गई। उसकी कमर में सिर्फ एक लुंगी थी।

‘‘ओह, यह क्या है ? छोटे मोतलाली !’’

इतने में घर से करुत्तम्मा को बुलाने की आवाज़ सुनाई पड़ी। चक्की, उसकी माँ, जो मछली बेचने के लिए पूरब गई थी, लौट आई थी। करुत्तम्मा नाराज होकर चली गई है। वह दुखी हुआ। उधर करुत्तम्मा को भी लगा कि वह परीकुट्टी के ही सामने क्यों, कहीं भी इस तरह नहीं हँसी थी। वह एक अजीब तरह का अनुभव था। कैसी थी वह हँसी ! दम घुटाने वाली छाती फाड़-डालने वाली। करुत्तम्मा को लगा था कि वह नग्न रूप में खड़ी है और एकदम अदृश्य हो जाना चाहती है। ऐसा अनुभव इसके पहले उसे कभी नहीं हुआ था। उस अनुभूति की तीव्रता में दिल को चुभने वाले कड़े शब्द उसके मुँह से निकल गए थे।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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