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महानगरी के नायक
‘महानगरी के नायक’ में मनोहर श्याम जोशी जी के पात्र कोई प्रसिद्धि प्राप्त, आसमान को छूती हुई बुलन्दियों वाले केवल नायक ही नहीं बल्कि गन्दी हाफ पैण्ट-कमीज पहने, त्यौरियों पर आक्रोश और आँतों में अलसर धारण किए हुए, दर्जनों ट्रे एक साथ उठाये कैण्टीन से दफ़्तर और दफ़्तर से कैण्टीन जाता हुआ रंजन है। रेसकोर्स में घोड़ों की रेस खेलता ओमप्रकाश है, बाल काटने वाला नाई है, रेस्तराँ वाला शमशेर इत्यादि पात्र हैं, लेकिन उनके चेहरे पे चेहरा है। दिन में इतनी मेहनत करने वाला रंजन साँझ के रचे हुए होंठ, चिकन का कुर्ता, बढ़िया लट्ठे का पाजामा, जयपुरी पगड़ी में नज़र आयेगा, जो कि संगीत का विद्यार्थी व पारखी है।
संस्कृति और भारतीयता के नाम पर भी दो प्रकार के नायक हैं। एक वे, जो विदेशों की चमक-दमक से प्रभावित होकर देश छोड़ने के पक्षधर हैं, दूसरे अध्यात्म रूप में समृद्ध भारत तथा शिक्षा के क्षेत्र में भी कुछ अंग्रेज़ी के कायल और कुछ हिन्दी के पाद पखारने में विश्वास रखने वाले। या यूँ कहिए जवानी को आधुनिकता प्यारी है और बुढ़ापा अपनी प्राचीन धरोहर को लेकर रोता है। मनोहर श्याम जोशी अपनी अनूठी शैली में किसी पात्र की अपने शब्दों से जो तस्वीर पेश करते हैं वो पाठक की आँखों में ही नहीं दिल में उतर जाती है। लच्छेदार भाषा व्यक्तित्व का दर्पण दिखाती है। अनेक हस्तियों से साक्षात्कार लेने के पश्चात् बातचीत को इतने सुन्दर व प्रभावशाली लहजे में कहने का गुर मनोहर श्याम जोशी जैसे महान साहित्यकार के अलावा किसमें हो सकता है। वास्तव में यह पुस्तक शब्दों के आईने में चेहरे दिखाती है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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